सोमवार, 4 जनवरी 2016

मालिक कौन और गुलाम कौन?

© संध्या पेडणेकर

http://classicalwisdom.com/diogenes-of-sinope
अपने जमाने में संतों को क्या कुछ झेलना नहीं पड़ता भले बाद में लोग उनकी महानता के कसीदे गाएं। मिस्त्र में एक ऐसा ही फकीर हुआ डायोजनीज जिसके बारे में विश्वविजेता सिकंदर ने कहा था, जो हो, अगर मैं सिकंदर नहीं होता तो यकीनन डायोजनीज होना पसंद करता। ऐसा डायोजनीज मिस्त्र के सिनोप में रहता था। लोग उसे विद्वान मानते थे और दूर दूर से उसकी सलाह लेने के लिए आते थे। हालांकि, खुद डायोजनीज के तौरतरीके थोड़े अजीब थे। उसका मानना था कि लोगों की ज़रूरतें बहुत कम होती हैं और किसी भी व्यक्ती को अपनी ज़रूरत से ज्यादा कुछ अपने पास नहीं रखना चाहिए। कहते हैं कि, वह खुद शराब के एक खाली पीपे में रहता था और जहां जाता उस पीपे को लुढकाकर साथ ले जाता।
एक बार गुलामों के कुछ व्यापारियों ने उसे पकड़ा कोरिंथ गांव में बेचने ले गए। डायोजनीज ने उनसे पूछा, मुझे पकड़ कर कहां ले जा रहे हो?’ पकड़नेवालों ने कहा, हम गुलामों को पकड़ कर बाज़ार में बेचते हैं। डायोजनीज उठ कर उनके साथ हो लिया, कहा, चलो, चलते हैं। अक्सर लोग उनसे बचने की कोशिश किया करते, लेकिन यह खुद चलने को तैयार हुआ तो गुलामों के व्यापारियों को अचरज लगा। डायोजनीज स्वस्थ, सुंदर और तगडा आदमी था, गुलामों के बाजार में उसकी अच्छी कीमत मिलती इसलिए उन्होंने उसे बाज़ार में खड़ा किया। उन्होंने आवाज लगाई, इस गुलाम को कोई खरीदेगा?’ तो डायोजनीज ने उन्हें डपट कर कहा, मैं आवाज लगाऊंगा। फिर वह चिल्लाया, कोई मालिक खरीदना चाहेगा क्या?’
गुलामों के बाज़ार में मालिक के बिकने की अजीब बात सुन कर वहां भीड़ इकठ्ठा हुई।
उसे पकड़कर लानेवाले नाराज हुए। कहने लगे, यह क्या तमाशा है?’
डायोजनीज बोला, मैं हर हाल में मालिक ही रहूंगा, भले कोई मुझे खरीद ही क्यों न ले जाए।
खरीदनेवालों की भीड़ में राजा भी था। डायोजनीज की बातें सुन कर उसने अपने नौकरों को आदेश दिया, खरीद लो इसे।
महल में आने के बाद राजा ने डायोजनीज से कहा, हम तुम्हारी टांग तुड़वा देंगे।
डायोजनीज ने कहा, तुम टांग तुडवाओगे मेरी? ठीक है, तुडवा दो, लो मैं अपनी टांग आगे बढ़ाता हूं। लेकिन जरा सोचो, नुकसान तुम्हारा होगा। तुमने काम करवाने के लिए मुझे खरीदा है। टांग टूटने के बाद मैं काम का नहीं रहूंगा।
राजा ने सोचा, मर्जी मेरी जो भी हो, यह सच कह रहा है। इसकी टांग तुडवा दूंगा तो यह बोझ बन जाएगा मुझ पर। तगडे दाम देकर इस सिरफिरे गुलाम को खरीदने का फायदा क्या हुआ फिर?
राजा ने अपने नौकरों से कहा, रहने दो, इसकी टांगें ना तोड़ो।
डायोजनीज ने कहा, देख लो, मालिक कौन और गुलाम कौन!’
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डायोजनीज के बारे में विस्तृत जानकारी पाने के लिए - http://www.ancient.eu/article/740/