ईसपनीति में एक कथा है। व्यवहारचातुरी का उत्तम
उदाहरण।
एक दिन एक सिंह, एक लोमडी और एक गधा शिकार के
लिए साथ में निकले। बरसात के दिन अभी अभी खत्म हुए थे। खुशगवार मौसम था। तीनों ने
मिल कर खूब शिकार किया।
कुछ ही देर में वहां मांस का ढ़ेर इकठ्ठा हुआ।
सिंह ने लोमडी से कहा,’तू समझदार है, और चालाक भी
है। अब इस शिकार के बराबर-बराबर तीन हिस्से कर दे। तीनों ने मिल कर शिकार किया है
तो तीनों को बराबर का हिस्सा मिलना चाहिए।’
लोमडी ने शिकार के हिस्से किए, बिल्कुल
बराबर-बराबर। न किसी हिस्से में एक बोटी कम, न ज़्यादा।
लेकिन इससे सिंह बहुत नाराज हुआ। वह कुछ देर तो
नाराजगी में गर्दन झटकता रहा लेकिन लोमडी फिर भी नहीं समझी तो झपट कर उसकी गर्दन
दबोची और उसे भी मांस के ढ़ेर पर फेंक दिया।
शिकार के हिस्से करने का काम अभी भी बाकी था।
सिंह ने गधे से कहा, हिस्से करने की जिम्मेदारी अब तेरी है। तू शिकार के दो हिस्से
करना। एक तेरे लिए, एक मेरे लिए। बिल्कुल बराबर-बराबर।
गधे ने एक तरफ शिकार का एक ढ़ेर लगा दिया और एक
मरे हुए कौए को एक तरफ कर दिया।
फिर मरे कौए की तरफ इशारा कर सिंह से कहा, ‘महाराज, ये मेरा आधा हिस्सा
और वह आधा आपका।’
सिंह बड़ा खुश हुआ। उसने कहा, ‘गधे! तू तो बड़ा सयाना निकला! विभाजन की कला तुमने कहां
से सीखी?’
गधे ने कहा कुछ नहीं, विनम्रता से सिर नवाया।
फिर मन ही मन उसने सिंह के किए सवाल का जवाब अपने आपको दिया, ‘इस मरी हुई लोमडी ने मुझे सिंह के साथ किए शिकार
को बराबर-बराबर बांटने की कला सिखाई!’
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लाठी किसके हाथ में है पहचानना जिसे आ गया वह
दुनिया का सबसे सयाना जीव ठहरा।
लोमडी बेचारी सयानी थी, लोग उसे चालाक भी समझते
थे लेकिन सत्ता की लाठी वह भांप नहीं पाई और उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ गया।
लोगों में गधे की छवि बेवकूफों वाली थी लेकिन
लोमडी की शहादत ने उसकी अकल के ताले खोल दिए।
जंगल में राजा एक,
प्रजातंत्र में राजाओं की भरमार।
किसकी नाराजगी कब आप पर भारी पड़े क्या पता!