-संध्या पेडणेकर
महाराष्ट्र में वारकरी संप्रदाय के संत विसोबा खेचर की कहानी लगभग सब जानते हैं। विसोबा आलंदी में रहनेवाले दुष्ट मानसिकतावाले ऐसे ब्राह्मण थे जो ज्ञानेश्वर, सोपानदेव और मुक्ताबाई से द्वेषभाव रखते थे।
एक बार मुक्ताबाई को मांडा (एक तरह की मिठाई) खाने की इच्छा हुई। मांडा बनाने के लिए मिट्टी का बर्तन चाहिए। बर्तन लेने ज्ञानेश्वर कुम्हार के पास चले। रास्ते में उन्हें विसोबा मिले। उन्हें पता चला तो वह भी ज्ञानेश्वर के साथ कुम्हार के घर गए। उनके कहने से कुम्हार ने बर्तन देने से मना किया।
दुखी ज्ञानेश्वर घर लौटे। मुक्ताबाई ने पूछा, 'बर्तन कहां है?' ज्ञानेश्वर ने कहा, 'तुम आटा गूंधो, मांडे मेरी पीठ पर लगाना।'
तमाशा देखने के लिए ज्ञानेश्वर के पीछे पीछे आकर छिप कर खड़े विसोबा को आश्चर्य का झटका तब लगा जब मुक्ताई के बनाए मांडे ज्ञानेश्वर की पीठ पर सिंकने लगे। इस चमत्कार को देख कर विसोबा में आमूलाग्र बदलाव आया। आगे बढ़ कर उन्होंने ज्ञानेश्वर के पैर पकड़े और माफी मांगी।
मुक्ताबाई समझ गई कि बर्तन न मिलने के पीछे विसोबा की कारस्तानी है। उसने गुस्से से कहा, 'दूर हो खच्चर! पहले तो बर्तन नहीं लेने दिया और अब मांडे बनने नहीं दोगे।'
ज्ञानेश्वर ने मुक्ताबाई को शांत किया लेकिन तबसे विसोबा हो गए विसोबा खच्चर। आज भी महाराष्ट्र में उन्हें विसोबा खेचर के नाम से ही जाना जाता है।
महाराष्ट्र में वारकरी संप्रदाय के संत विसोबा खेचर की कहानी लगभग सब जानते हैं। विसोबा आलंदी में रहनेवाले दुष्ट मानसिकतावाले ऐसे ब्राह्मण थे जो ज्ञानेश्वर, सोपानदेव और मुक्ताबाई से द्वेषभाव रखते थे।
एक बार मुक्ताबाई को मांडा (एक तरह की मिठाई) खाने की इच्छा हुई। मांडा बनाने के लिए मिट्टी का बर्तन चाहिए। बर्तन लेने ज्ञानेश्वर कुम्हार के पास चले। रास्ते में उन्हें विसोबा मिले। उन्हें पता चला तो वह भी ज्ञानेश्वर के साथ कुम्हार के घर गए। उनके कहने से कुम्हार ने बर्तन देने से मना किया।
दुखी ज्ञानेश्वर घर लौटे। मुक्ताबाई ने पूछा, 'बर्तन कहां है?' ज्ञानेश्वर ने कहा, 'तुम आटा गूंधो, मांडे मेरी पीठ पर लगाना।'
तमाशा देखने के लिए ज्ञानेश्वर के पीछे पीछे आकर छिप कर खड़े विसोबा को आश्चर्य का झटका तब लगा जब मुक्ताई के बनाए मांडे ज्ञानेश्वर की पीठ पर सिंकने लगे। इस चमत्कार को देख कर विसोबा में आमूलाग्र बदलाव आया। आगे बढ़ कर उन्होंने ज्ञानेश्वर के पैर पकड़े और माफी मांगी।
मुक्ताबाई समझ गई कि बर्तन न मिलने के पीछे विसोबा की कारस्तानी है। उसने गुस्से से कहा, 'दूर हो खच्चर! पहले तो बर्तन नहीं लेने दिया और अब मांडे बनने नहीं दोगे।'
ज्ञानेश्वर ने मुक्ताबाई को शांत किया लेकिन तबसे विसोबा हो गए विसोबा खच्चर। आज भी महाराष्ट्र में उन्हें विसोबा खेचर के नाम से ही जाना जाता है।
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मन शैतानियों में लगा ही रहता है, कभी किसी वजह से, कभी बेवजह।
मन को खाली करना भले-भलों को नहीं जमा। हां, अज्ञानी मन चमत्कार के आगे झुकता है।
और, क्या यह सही है कि संत अत्याचारियों द्वारा किए गए पाप सहते जाएं?
और, क्या यह सही है कि संत अत्याचारियों द्वारा किए गए पाप सहते जाएं?
और कुछ वे करें न करें, कम से कम परमात्मा के दरबार में न्याय की गुहार तो वे लगा ही सकते हैं।