शुक्रवार, 29 मार्च 2013

नहि सत्यात्परो धर्मः


-संध्या पेडणेकर
एक बार कई ब्राह्मण दार्शनिक गौतम से मिलने आए। गौतम के शिष्यों ने अपने गुरु से कहा, आपसे मुलाकात की उम्मीद लेकर वे ब्रह्मवादी दार्शनिक आपसे मिलने आए हैं। उन्होंने एक नए दर्शन की स्थापना की है और इस दर्शन के प्रमुख भगवान ब्रह्म है यह उनका दावा है। गुरुजी, इस बारे में आपके विचार क्या हैं यह हम सब जानना चाहते हैं।
इस पर गौतम ने जो जवाब दिया वह विचारणीय है ऐसा मुझे लगता है। गौतम ने ब्रह्मवादियों से सवाल किया, क्या आप लोगों ने ब्रह्म को देखा है?’ उन्होंने कहा, नहीं। गौतम ने पूछा, क्या आपकी ब्रह्म से बातचीत हुई है?’ जवाब मिला, नहीं। गौतम ने पूछा, क्या आपने ब्रह्म के बारे में कुछ सुना है?’ फिर जवाब मिला, नहीं। गौतम ने पूछा, क्या आपने ब्रह्म को चखा है?’  जवाब वही था, नहीं तब गौतम ने उनसे कहा कि जब आप कहते हैं कि आपके पंचज्ञानेंद्रियों ने और पंचकर्मेंद्रियों ने ब्रह्म क्या है इसका अनुभव नहीं किया, तो फिर ब्रह्म है यह आप किस भरोसे कहते हैं? इस पर ब्रह्मवादियों से कोई जवाब देते नहीं बना।
डॉ बाबासाहब आंबेडकर लेखन आणि भाषणे, खंड 18, भाग 3, 243.
वडाला, मुंबई में स्थित सिद्धार्थ कला एवं विज्ञान महाविद्यालय के पहले वर्षिक समारोह के अवसर पर दिए वक्तव्य से उर्द्धृत
गौतम बुद्ध के जीवन से संबंधीत कहानी को उस अवसर पर सुनाने का औचित्य विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा था - सोचिए, गौतम बुद्ध के इस कथन का अर्थ क्या हुआ? इसका अर्थ है कि हर इंसान को सोचने की आजादी है लेकिन अपनी इस आजादी का उपयोग उसे सत्य को ढूंढ़ने के लिए करना होगा। आखिर सत्य के मायने क्या हैं? व्यक्ति के पंच कर्मेंद्रियों और पंच ज्ञानेंद्रियों को जो सही लगे वही सत्य है। यानी कि, सत्य दिखाई दे, सुनाई दे, उसे हम सूंघ सकें, उसका स्वाद ले सकें और उसके अस्तित्व के बारे में हम लोगों को यकीन दिला सकें।गौतम ने अपने शिष्यों के आगे यही उद्देश्य रखे थे। सिद्धार्थ कॉलेज भी इन्हीं लक्ष्यों का अनुसरण करनेवाला है – 1.सत्य को ढूंढ निकालना, 2.मानवता की सीख देनेवाले धर्म का ही अनुसरण करना। 
अपने वक्तव्य में आगे उन्होंने कहा था, "सत्य और पूर्ण ज्ञान परस्परविरोधी बातें हैं। शास्त्र भी किसी बात को परिपूर्ण या अंतिम नहीं मानता। इसीलिए सत्य भी अधूरा होने के कारण कालानुसार बार बार उसे ढूंढना क्रमप्राप्त है। इसी कारण दुनिया में पूरी तरह पवित्र कुछ भी नहीं।
धर्म यानी सत्य यह हमें सीखना होगा। नहि सत्यात्परो धर्मः! यानी, सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं । हमारा लक्ष्य भी यही हो। हम किसी और को कभी दुख न दें। यही हमारे धर्म की सीख होनी चाहिए। सत्य ढूंढने में व्यक्ति को पूरी आजादी मिले यही अपने इस कॉलेज का लक्ष्य हो।"