मंगलवार, 12 नवंबर 2013

तोल मोल के बोल

-संध्या पेडणेकर
वैज्ञानिक भी खोज नहीं पाए हैं कि कुत्ते क्यों भौंकते हैं? बिना भौंके उन्हें चैन क्यों नहीं आता?
खलील जिब्रान की एक कहानी है।
कुत्तों की दुनिया में एक कुत्ता गुरु हो गया।
उसने बाकी कुत्तों को समझाना शुरु किया कि भौंकने की वजह से हमारी जाति अधोगति को प्राप्त हुई है। हम अब तक दुनिया पर राज कर रहे होते अगर सारी ताकद भौंकने  में नहीं गंवाते। इस स्थिति से उबरना है तो संयम बरतो। भौंकना बंद करो। खुद पर नियंत्रण रखो।
बाकी कुत्तों को लगता कि, बात तो यह पते की कर रहा है।
लेकिन गले में जब भौंकने की सुरसुरी चढ़ती तो वे मजबूर हो जाते। वे गुरु कुत्ते को बड़ा महान समझते क्योंकि गुरु को कभी उन्होंने भौंकते हुए नहीं देखा था। उनके आचरण और सिद्धांत की समानता बाकी कुत्तों को वंदनीय लगती।
गुरु की हालत यह थी कि उसका दिन सारा समझाने में निकल जाता। भौंकने के लिए उसके पास ताकद ही नहीं बचती। वह दिन भर घूमता, जहां जहां कुत्ते भौंकते मिलते उन्हें उपदेश देता। शाम तक उसका गला थक जाता।
कुत्ते जल्द ही गुरु से परेशान हो गए। बिना बात के उपदेश देनेवाला किसीको नहीं सुहाता।
कुत्तों को लगता, इसकी बात तो सही है, लेकिन हम शायद कभी इसकी बात मान नहीं पाएंगे। भौंकना हमारी प्रकृति है। गले में जब सुरसुरी उठती है तब भौंके बिना रहा ही नहीं जा सकता। लेकिन अब यह बूढ़ा हो गया है, मरने के करीब है। उसका दिल रखने के लिए हमें इसकी बात एकाध दिन के लिए तो मान लेनी चाहिए। उस दिन चाहे जो हो जाए, कोई मुसीबत आए, हम भौंकेंगे नहीं।
दिन मुकर्रर हुआ।
सभी कुत्तों ने उस दिन अपना मुंह बंद रखा। भीतर से होनेवाली बेचैनी को वश में रखा। हर कुत्ते ने सोचा कि जब तक कोई दूसरा कुत्ता नहीं भौंकता, मैं नहीं भौंकूंगा।
उस दिन कोई कुत्ता नहीं भौंका।
आधी रात को लेकिन एक कुत्ते ने भौंकना शुरू कर दिया।
फिर तो सारे कुत्तों ने उसका जी भर कर साथ दिया।
पूरा गांव जग गया, लेकिन किसीको इस बात का पता नहीं चला कि पहला कुत्ता कौन था जिसने भौंकना शुरू किया था। किसने न भौंकने का व्रत तोड़ दिया था।
जिब्रान बताते हैं - उस दिन गुरु पूरे गांव में घूमा लेकिन सारे कुत्ते चुप थे। रात के बारह बजे तक तो वह घबरा उठा। दिन भर न बोलने के कारण उसके गले में सुरसुरी होने लगी थी।
आखिर उससे रहा नहीं गया। एक अंधेरी गली में  जाकर वह जी भर कर भौंका। वही पहला कुत्ता था जो उस दिन भौंका था। फिर तो सभी कुत्तों ने समां बांध दिया था।
:)
कुत्तों की तरह ही इंसानों की बीमारी है बोलना।
बोल कर वे अपने को हल्का कर लेते हैं।
क्या सचमुच हमेशा बोलते रहना ज़रूरी होता है?
संवाद खत्म होने पर बोलना केवल कर्कशता भर रह जाता है।
बोलने और भौंकने में कोई फर्क न हो जैसे।