-संध्या पेडणेकर
पंजाब के संत बुल्लेशाह के बारे में बताया जाता है कि उन्होंने एक माली को अपना गुरु माना था।
एक दिन वह अपने गुरु से मिलने गए तब उनके गुरु बगीचे में काम कर रहे थे।
बुल्ले शाह ने उनसे पूछा, मुझे कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे परमात्मा की प्राप्ति हो जाए।
उनके गुरु ने उनकी तरफ देखे बिना कहा, परमात्मा का पाना क्या, यहां से उखाड़ना, वहां लगाना।
"बुल्लिहआ रब दा की पौणा| एधरों पुटणा ते ओधर लाउणा|"
कुछ समय तक सोचने के बाद बुल्लेशाह ने उनसे कहा, मैं समझा नहीं।
गुरु ने उनसे पूछा, जानते हो परमात्मा कहां है?
बुल्लेशाह बोले, आसमान में।
गुरु बोले, तो उखाड़ उसे आसमान से और जमा दे अपनी छाती में! अपनी छाती में भरे खुदी के खयाल को उखाड और सबकी छाती में बसा। इसतरह सब लोग तुम्हें 'मैं' ही नज़र आने लगेंगे। अपने दिल में ऐसा प्यार पैदा कर कि सबमें तुझे 'मैं' नज़र आए।
पंजाब के संत बुल्लेशाह के बारे में बताया जाता है कि उन्होंने एक माली को अपना गुरु माना था।
एक दिन वह अपने गुरु से मिलने गए तब उनके गुरु बगीचे में काम कर रहे थे।
बुल्ले शाह ने उनसे पूछा, मुझे कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे परमात्मा की प्राप्ति हो जाए।
उनके गुरु ने उनकी तरफ देखे बिना कहा, परमात्मा का पाना क्या, यहां से उखाड़ना, वहां लगाना।
"बुल्लिहआ रब दा की पौणा| एधरों पुटणा ते ओधर लाउणा|"
कुछ समय तक सोचने के बाद बुल्लेशाह ने उनसे कहा, मैं समझा नहीं।
गुरु ने उनसे पूछा, जानते हो परमात्मा कहां है?
बुल्लेशाह बोले, आसमान में।
गुरु बोले, तो उखाड़ उसे आसमान से और जमा दे अपनी छाती में! अपनी छाती में भरे खुदी के खयाल को उखाड और सबकी छाती में बसा। इसतरह सब लोग तुम्हें 'मैं' ही नज़र आने लगेंगे। अपने दिल में ऐसा प्यार पैदा कर कि सबमें तुझे 'मैं' नज़र आए।
---
बुल्ले शाह का मूल नाम अब्दुल्लाशाह था| FROM- http://www.spiritualworld.co.in आगे चलकर इनका नाम
बुल्ला शाह या बुल्ले शाह हो गया| इनके पिता शाह मुहम्मद
थे जिन्हें अरबी, फारसी और कुरान शरीफ
का अच्छा ज्ञान था| वे मस्जिद के मौलवी थे| सैयद जाति के थे| उनकी नेकी के कारण उन्हें आदर से दरवेश कहा जाता था| पिता के व्यक्तित्व का प्रभाव बुल्ले शाह पर
भी पड़ा| बुल्ले शाह की उच्च शिक्षा कसूर
में हुई| इनके उस्ताद हजरत गुलाम मुर्तजा जैसे ख्यातनाम गुरु थे| अरबी, फारसी के विद्वान होने
के साथ साथ उन्होंने इस्लामी और सूफी धर्म ग्रंथो का भी गहरा अध्ययन किया| परमात्मा के दर्शन की तड़प उन्हें फकीर हजरत शाह
कादरी के द्वार पर खींच लाई| हजरत इनायत शाह का
डेरा लाहौर में था| वे जाति से अराई थे| अराई लोग खेती-बाड़ी, बागबानी और साग-सब्जी की खेती करते थे| बुल्ले शाह के परिवार वाले इस बात से दुखी थे कि
बुल्ले शाह ने निम्न जाति के इनायत शाह को अपना गुरु बनाया है| उन्होंने समझाने का बहुत यत्न किया परन्तु बुल्ले
शाह जी अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुए| परिवार जनों के साथ
हुई तकरार का जिक्र उन्होंने इन शब्दों में किया -
बुल्ले नूँ समझावन आँईयाँ
भैनाँ ते भरजाईयाँ
'मन्न लै बुल्लेया साड्डा
कैहना, छड्ड दे पल्ला राईयाँ
आल नबी, औलाद अली, नूँ तू क्यूँ लीकाँ लाईयाँ?'
'जेहड़ा सानू सईय्यद
सद्दे, दोज़ख़ मिले सज़ाईयाँ
जो कोई सानू राईं आखे,
बहिश्तें पींगाँ पाईयाँ
राईं-साईं सभनीं थाईं रब
दियाँ बे-परवाईयाँ
सोहनियाँ परे हटाईयाँ ते
कूझियाँ ले गल्ल लाईयाँ
जे तू लोड़ें बाग़-बहाराँ
चाकर हो जा राईयाँ
बुल्ले शाह दी ज़ात की
पुछनी? शुकर हो रज़ाईयाँ'
अर्थ -
बुल्ले को समझाने बहनें
और भाभियाँ आईं
(उन्होंने कहा) 'हमारा कहना मान बुल्ले, आराइनों का साथ छोड़ दे
नबी के परिवार और अली के
वंशजों को क्यों कलंकित करता है?'
(बुल्ले ने जवाब दिया) 'जो मुझे सैय्यद बुलाएगा उसे दोज़ख़ (नरक) में
सज़ा मिलेगी
जो मुझे आराइन कहेगा उसे
बहिश्त (स्वर्ग) के सुहावने झूले मिलेंगे
आराइन और सैय्यद इधर-उधर
पैदा होते रहते हैं, परमात्मा को ज़ात
की परवाह नहीं
वह ख़ूबसूरतों को परे
धकेलता है और बदसूरतों को गले लगता है
अगर तू बाग़-बहार
(स्वर्ग) चाहता है, आराइनों का नौकर
बन जा
बुल्ले की ज़ात क्या
पूछता है? भगवान की बनाई दुनिया के
लिए शुक्र मना'