-संध्या पेडणेकर.
मिथिला के राजा थे नेमी। उन्होंने न कभी शास्त्र पढ़ा था, न आध्यात्म में उनकी कोई रुचि थी। जब बूढ़े हुए तो घोर दाह ज्वर ने उन्हें पकड़ा। रानियां शीतलता के लिए उनके शरीर पर चंदन और केसर का लेप करने लगीं। रानियों के हाथ में थीं सोने की चूडियां। लेप करते समय ये चूडियां खनकतीं। नेमी को चूडियों की खनक खटकती। उन्होंने रानियों से चूडियां हटाने को कहा। रानियां सोच में पड़ गईं। चूडियां तो सुहाग की निशानी होती हैं। उन्हें कैसे हटाया जाए? लेकिन सम्राट की बात को टालें भी तो कैसें? मध्यम मार्ग निकालते हुए उन्होंने सुहाग की निशानी के तौर पर एक एक चूडी रखते हुए बाकी सभी चूडियां उतार दीं।
चूडियों की आवाज बंद हो गई, लेप लगता रहा ।
आवाज बंद हो गई तो सम्राट नेमी के मन में एक खयाल आया - हाथ में जब दस चूडियां थीं तो बजती थीं, एक रही तो बजती नहीं। उन्हें साक्षात्कार हुआ कि अनेक हैं तो शोरगुल है, एक है तो शांति है। नेमी उठ कर बैठ गए। बोले कि, मुझे जाने दो।
रानियां भोगी नेमी को जानती थीं - योगी नेमी को नहीं। उन्हें लगा राजा ज्वर की तीव्रता से विक्षिप्त हो गए हैं। वे घबरा गईं। राजा को रोकने लगीं। नेमी ने कहा, घबराओ नहीं। यह कोई सन्निपात नहीं है। सन्निपात तो था, अब गया। तुम्हारी चूडियों की बड़ी कृपा। कैसी जगह से परमात्मा ने सूरज निकाल दिया! तुमने बहुत चूडियां पहन रखी थीं तो बजती थीं। एक बची तो शोरगुल बंद हुआ। उससे बोध हुआ कि जब तक मन में आकांक्षाएं हैं तब तक शोरगुल है। वासनाएं अनंत हैं, आकांक्षा एक होनी चाहिए। परमात्मा से मिलन की। जागरुकता चाहिए, इशारा कहीं से भी मिल सकता है।
---
मिथिला के राजा थे नेमी। उन्होंने न कभी शास्त्र पढ़ा था, न आध्यात्म में उनकी कोई रुचि थी। जब बूढ़े हुए तो घोर दाह ज्वर ने उन्हें पकड़ा। रानियां शीतलता के लिए उनके शरीर पर चंदन और केसर का लेप करने लगीं। रानियों के हाथ में थीं सोने की चूडियां। लेप करते समय ये चूडियां खनकतीं। नेमी को चूडियों की खनक खटकती। उन्होंने रानियों से चूडियां हटाने को कहा। रानियां सोच में पड़ गईं। चूडियां तो सुहाग की निशानी होती हैं। उन्हें कैसे हटाया जाए? लेकिन सम्राट की बात को टालें भी तो कैसें? मध्यम मार्ग निकालते हुए उन्होंने सुहाग की निशानी के तौर पर एक एक चूडी रखते हुए बाकी सभी चूडियां उतार दीं।
चूडियों की आवाज बंद हो गई, लेप लगता रहा ।
आवाज बंद हो गई तो सम्राट नेमी के मन में एक खयाल आया - हाथ में जब दस चूडियां थीं तो बजती थीं, एक रही तो बजती नहीं। उन्हें साक्षात्कार हुआ कि अनेक हैं तो शोरगुल है, एक है तो शांति है। नेमी उठ कर बैठ गए। बोले कि, मुझे जाने दो।
रानियां भोगी नेमी को जानती थीं - योगी नेमी को नहीं। उन्हें लगा राजा ज्वर की तीव्रता से विक्षिप्त हो गए हैं। वे घबरा गईं। राजा को रोकने लगीं। नेमी ने कहा, घबराओ नहीं। यह कोई सन्निपात नहीं है। सन्निपात तो था, अब गया। तुम्हारी चूडियों की बड़ी कृपा। कैसी जगह से परमात्मा ने सूरज निकाल दिया! तुमने बहुत चूडियां पहन रखी थीं तो बजती थीं। एक बची तो शोरगुल बंद हुआ। उससे बोध हुआ कि जब तक मन में आकांक्षाएं हैं तब तक शोरगुल है। वासनाएं अनंत हैं, आकांक्षा एक होनी चाहिए। परमात्मा से मिलन की। जागरुकता चाहिए, इशारा कहीं से भी मिल सकता है।
---
गुरु ने सभी शिष्यों से पूछा लेकिन केवल पंछी की आंख एक को ही दिखाई दी। वही श्रेष्ठ धनुर्धर भी बना।
शोरगुल - अंदर का हो या बाहर का, कभी बंद कर देना होता है तो कभी बहरा बनना होता है।
ज्ञान के सूरज का उदय कहीं से भी हो सकता है लेकिन इशारा पहचानने के लिए मन शांत चाहिए।
मन का स्थिर होना लक्ष्य प्राप्ति की पहली शर्त है और चित्त को स्थिर रखने के लिए हिमालय में या किसी तीर्थस्थान पर जाने से अधिक अपने अंदर झांकने की ज़रूरत होती है।
ज्ञान के सूरज का उदय कहीं से भी हो सकता है लेकिन इशारा पहचानने के लिए मन शांत चाहिए।
मन का स्थिर होना लक्ष्य प्राप्ति की पहली शर्त है और चित्त को स्थिर रखने के लिए हिमालय में या किसी तीर्थस्थान पर जाने से अधिक अपने अंदर झांकने की ज़रूरत होती है।