©-संध्या पेडणेकर
एक राजा के दरबार में हीरों
का एक व्यापारी आया। उसके पास एक जोडी चमकीले हीरे थे। हीरे इतने सुंदर और तेजस्वी
थे कि नजर चुंधिया जाए। उन दो हीरों में से एक था असली और दूसरा था नकली। असली
हीरे की हुबहू नकल था नकली हीरा।
व्यापारी ने राजा से कहा कि
जो असली हीरा पहचानेगा उसे मैं पुरस्कार में असली हीरा दूंगा।
कठिन चुनौती थी। दोनों हीरे
असली ही लग रहे थे। एक-से। पहचानना मुश्किल था कि असली कौन-सा है और नकली कौन-सा। चुनौति
किसी व्यक्ति के लिए नहीं दरबार के लिए दी गई है ऐसा राजा को लगा। इस वजह से भी हर
कोई चुनौती को स्वीकारने से कतरा रहा था।
अचानक एक अंधा सामने आया।
उसने चुनौती स्वीकारने की बात कही। राजा से उसने कहा कि इजाजत हो तो इस चुनौती को स्वीकारने के लिए मैं
तैयार हूं।
राजासमेत सभी दरबारी गण आश्चर्य
में थे कि जहां आंखोंवाले इस चुनौती को स्वीकारने से कतरा रहे थे वहां एक अंधा इसे
स्वीकारने की बात कर रहा था।
खैर, राजा ने उसे इजाजत दे
दी।
अंधे ने आगे आकर बारी बारी हीरों
को छुआ। फिर एक हीरा उठा कर उसे असली बताया।
हीरों के व्यापारी ने उसी को
असली हीरा बताया।
असली हीरे को एक अंधे ने
पहचाना इससे सभी आश्चर्यचकित थे।
राजा ने अंधे से पूछा कि
उसने अली हीरा कैसे पहचाना?
अंधे ने कहा, बहुत आसान था।
श्रेष्ठ व्यक्ति की तरह हीरे पर भी वातावरण के ताप का कोई असर नहीं होता। किसी भी
हाल में उसका तापमान बढ़ता नहीं। जिसका तापमान बढ़ा था वह नकली हीरा था। इसलिए
असली हीरा पहचानना मुश्किल नहीं था।
असली हीरा उसे ही मिला।
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हीरा पाने का अधिकार हीरे
की पहचान रखनेवाले को ही होता है।
जिसे पहचान न हो उसके लिए खदान से निकलनेवाले कोयले और हीरे में कोई फर्क नहीं होता।
हीरा भी असल में एक पत्थर ही है।
पारखी ही पत्थरों के बीच भी हीरे को तलाश लेते हैं।जिसे पहचान न हो उसके लिए खदान से निकलनेवाले कोयले और हीरे में कोई फर्क नहीं होता।
हीरा भी असल में एक पत्थर ही है।