© संध्या पेडणेकर
गौतम बुद्ध यात्रा कर रहे थे। एक दिन दूर तक यात्रा के बाद थक कर नदी तट के एक वृक्ष के नीचे बैठे विश्राम करने लगे।
संयोग से, काशी से ज्योतिष विद्या का बारह वर्षों तक अध्ययन करने के बाद एक महापंडित उसी रास्ते अपने गांव लौट रहे थे।
नदी तट की गीली रेत में बने बुद्ध के चरणचिह्नों पर उनकी नज़र पड़ी तो वह हैरान रह गए। जो देखा अगर वह सच था तो जिस ज्ञान की पूंजी लेकर वह लौटे थे वह गलत थी और अगर शास्त्र सही थे तो भरी दुपहरी में इस दीन-दरिद्र गांव में, इस सूखी नदी के तट पर ये चक्रवर्ती सम्राट के चरणचिह्न कैसे? कोई चक्रवर्ती सम्राट भरी दुपहरी में नंगे पैर इस गंदे, दरिद्र नदी के किनारे क्या करने आँएंगे? महल से बाहर की धूल ऐसे व्यक्ति के पैर छू नहीं सकती।
और चरणचिह्न एक ही व्यक्ति के थे। साथ में वजीर नहीं, सोनापति नहीं, असंभव!
महापंडित को यह अपने ज्ञान के लिए चुनौती सी लगी। चरणचीह्नों के सहारे वह उस व्यक्ति की खोज में निकले।
खोजते खोजते वह गौतम बुद्ध के पास पहुंचे।
उन पर नज़र पड़ते ही वह चकरा गए। सौंदर्य, आभा, सुगंध से भरपूर ऐसे व्यक्तित्व को चक्रवर्ती सम्राट ही होना चाहिए, परंतु....
पास में रखा भिक्षापात्र, फटे, जीर्ण वस्त्र, पीठ से चिपका पेट, हड्डी मात्र देह....और शायद भूखी भी। श्रांत, मलिन, पेड से पीठ टिकाए व्यक्ति ने उन्हें उलझन में डाल दिया।
आखिर महापंडित गौतम बुद्ध के पास गए और उनसे कहा, "बारह वर्षों तक बड़ी मेहनत करके ज्योतिष की शिक्षा लेकर लौट रहा हूं। आप पहले आदमी हैं जो मुझे मिल रहे हैं और आपने मुझे उलझन में डाल दिया है। आपके चरणचीह्न बताते हैं कि आप सम्राट हैं। आपका भिक्षा पात्र, आपका इस प्रकार भरी दोपहरी में वृक्ष के नीचे बैठे होना ... जाहिर है, आप भिक्षु हैं। ... फिर आपकी आंखों और और आपके चेहरे पर नज़र पड़ते ही लगता है कि आप चक्रवर्ती सम्राट हैं। मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं।"
गौतम बुद्ध हंसे। उन्होंने कहा, जब तक मैं बंधा था तब तक तुम्हारा भविष्य सच्चा था। सोए हुए लोगों के बारे में आपका भविष्य सच हो सकता है, मेरे बारे में नहीं, क्योंकि अब मैं जागा हुआ हूं।
ज्योतिषि कुछ समझा नहीं। उसने पूछा, 'आप कौन हैं?'
भगवान बुद्ध ने कहा, 'मैं केवल बुद्ध हूं। जागा हुआ हूं।' '
गौतम बुद्ध यात्रा कर रहे थे। एक दिन दूर तक यात्रा के बाद थक कर नदी तट के एक वृक्ष के नीचे बैठे विश्राम करने लगे।
संयोग से, काशी से ज्योतिष विद्या का बारह वर्षों तक अध्ययन करने के बाद एक महापंडित उसी रास्ते अपने गांव लौट रहे थे।
नदी तट की गीली रेत में बने बुद्ध के चरणचिह्नों पर उनकी नज़र पड़ी तो वह हैरान रह गए। जो देखा अगर वह सच था तो जिस ज्ञान की पूंजी लेकर वह लौटे थे वह गलत थी और अगर शास्त्र सही थे तो भरी दुपहरी में इस दीन-दरिद्र गांव में, इस सूखी नदी के तट पर ये चक्रवर्ती सम्राट के चरणचिह्न कैसे? कोई चक्रवर्ती सम्राट भरी दुपहरी में नंगे पैर इस गंदे, दरिद्र नदी के किनारे क्या करने आँएंगे? महल से बाहर की धूल ऐसे व्यक्ति के पैर छू नहीं सकती।
और चरणचिह्न एक ही व्यक्ति के थे। साथ में वजीर नहीं, सोनापति नहीं, असंभव!
महापंडित को यह अपने ज्ञान के लिए चुनौती सी लगी। चरणचीह्नों के सहारे वह उस व्यक्ति की खोज में निकले।
खोजते खोजते वह गौतम बुद्ध के पास पहुंचे।
उन पर नज़र पड़ते ही वह चकरा गए। सौंदर्य, आभा, सुगंध से भरपूर ऐसे व्यक्तित्व को चक्रवर्ती सम्राट ही होना चाहिए, परंतु....
पास में रखा भिक्षापात्र, फटे, जीर्ण वस्त्र, पीठ से चिपका पेट, हड्डी मात्र देह....और शायद भूखी भी। श्रांत, मलिन, पेड से पीठ टिकाए व्यक्ति ने उन्हें उलझन में डाल दिया।
आखिर महापंडित गौतम बुद्ध के पास गए और उनसे कहा, "बारह वर्षों तक बड़ी मेहनत करके ज्योतिष की शिक्षा लेकर लौट रहा हूं। आप पहले आदमी हैं जो मुझे मिल रहे हैं और आपने मुझे उलझन में डाल दिया है। आपके चरणचीह्न बताते हैं कि आप सम्राट हैं। आपका भिक्षा पात्र, आपका इस प्रकार भरी दोपहरी में वृक्ष के नीचे बैठे होना ... जाहिर है, आप भिक्षु हैं। ... फिर आपकी आंखों और और आपके चेहरे पर नज़र पड़ते ही लगता है कि आप चक्रवर्ती सम्राट हैं। मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं।"
गौतम बुद्ध हंसे। उन्होंने कहा, जब तक मैं बंधा था तब तक तुम्हारा भविष्य सच्चा था। सोए हुए लोगों के बारे में आपका भविष्य सच हो सकता है, मेरे बारे में नहीं, क्योंकि अब मैं जागा हुआ हूं।
ज्योतिषि कुछ समझा नहीं। उसने पूछा, 'आप कौन हैं?'
भगवान बुद्ध ने कहा, 'मैं केवल बुद्ध हूं। जागा हुआ हूं।' '
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सोए हुओं पर ज्योतिष सही हो सकता है। जो मूर्छित हैं उनका तय भाग्य है।
लेकिन जो जाग गए हैं उनका कोई तय भाग्य नहीं।
लेकिन जो जाग गए हैं उनका कोई तय भाग्य नहीं।
जो जागते हैं उनके भविष्य की बागडोर तो स्वयं उनके हाथ में आ जाती है।