-संध्या पेडणेकर
एक राज्य के तीन अधिकारियों ने अपने अधिकारों के बल पर बडे घपले किए।
राजा को पता चला तब उसने तीनों को बुलाया।
उनमें से एक से राजा ने कहा, 'मुझे आपसे यह उम्मीद नहीं थी।'
दूसरे आदमी को राजा ने एक साल की सजा सुनाई।
तीसरे आदमी को नगर में गधे पर उल्टा बिठा कर घुमाने, सौ कोडे लगाने और बीस साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई।
राजा न्यायी था लेकिन उसका यह न्याय अन्य दरबारियों को अटपटा लगा। वे आपस में चर्चा करने लगे कि एक ही अपराध के लिए तीन लोगों को अलग अलग सजा सुनाना क्या न्यायसंगत है? आखिर उन्होंने राजा से ही अपने मन की आशंका का समाधान करने की विनति की। उन्होंने पूछा कि, महाराज, एक ही अपराध के लिए समान रूप से दोषियों को इसतरह अलग अलग सजा क्यों दी गई यह हम जानना चाहते हैं।
राजा ने उनसे कहा, 'जैसा आदमी वैसी सजा - इसी तत्व का पालन करते हुए मैंने इन तीनों को अलग अलग सजा सुनाई। जो व्यक्ति सज्जन था, जिसने बुरी संगत में फंस कर बुरा कर्म किया था, उसे मैंने कोई सजा नहीं दी, केवल नाउम्मीदी जताई। उस व्यक्ति को इतना बुरा लगा कि उसने घर जाकर आत्महत्या की। दूसरे आदमी की चमडी थोडी मोटी थी इसलिए उसे मैंने एक साल की सजा सुनाई।'
एक दरबारी से रहा नहीं गया। वह बोला, 'लेकिन महाराज, तीसरे व्यक्ति को जो सजा सुनाई गई वह बेहद कठोर है।'
उसकी बात सुन कर राजा मुस्कुराया। कहा, 'आप लोग कारागृह में जाकर एक बार उस आदमी से मुलाकात कीजिए। हो सकता है, उसे मैंने इतनी कठोर सजा क्यों दी यह बात आपकी समझ में आ जाए।'
कुछ दरबारीगण कारागार में अपने सजायाफ्ता सहयोगी से मिलने पहुंचे।
वे यह देख कर हैरान रह गए कि उस आदमी के चेहरे पर शर्मिंदगी का नामोनिशान भी नहीं था। गधे पर उल्टा बिठा कर पूरे नगर में घुमाने का, कोडे की मार खाने का और बीस साल के कारावास की सजा मिलने का उसे जरा भी रंज नहीं था। वह बड़े मजे में था। मिलने आए अपने पुराने सहयोगियों से वह बोला, 'केवल बीस सालों की ही तो सजा सुनाई है, यूं देखते देखते समय बीत जाएगा। और मैंने इतना कमा कर रखा है कि अगली सात पुश्तों तक हमारे खानदान में किसीको कोई काम करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। ऐश से जी सकते हैं हम! और वैसे यह कहने भर को ही कारागार है, यहां किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं है...'
एक दरबारी ने पूछा, 'चौक में, सबके सामने खडे कर तुम्हें कोडे लगाए गए, सब दूर आपकी बदनामी हुई....'
उसे बीच में ही टोकते हुए वह आदमी बोला, 'बदनामी में भी नाम तो होता ही है! मैं तो मशहूर हो गया हूं! आज पूरे नगर में लोग मेरे ही बारे में बोल रहे होंगे....'
दरबारियों को मानना ही पड़ा कि राजा ने सही न्याय किया था।
एक राज्य के तीन अधिकारियों ने अपने अधिकारों के बल पर बडे घपले किए।
राजा को पता चला तब उसने तीनों को बुलाया।
उनमें से एक से राजा ने कहा, 'मुझे आपसे यह उम्मीद नहीं थी।'
दूसरे आदमी को राजा ने एक साल की सजा सुनाई।
तीसरे आदमी को नगर में गधे पर उल्टा बिठा कर घुमाने, सौ कोडे लगाने और बीस साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई।
राजा न्यायी था लेकिन उसका यह न्याय अन्य दरबारियों को अटपटा लगा। वे आपस में चर्चा करने लगे कि एक ही अपराध के लिए तीन लोगों को अलग अलग सजा सुनाना क्या न्यायसंगत है? आखिर उन्होंने राजा से ही अपने मन की आशंका का समाधान करने की विनति की। उन्होंने पूछा कि, महाराज, एक ही अपराध के लिए समान रूप से दोषियों को इसतरह अलग अलग सजा क्यों दी गई यह हम जानना चाहते हैं।
राजा ने उनसे कहा, 'जैसा आदमी वैसी सजा - इसी तत्व का पालन करते हुए मैंने इन तीनों को अलग अलग सजा सुनाई। जो व्यक्ति सज्जन था, जिसने बुरी संगत में फंस कर बुरा कर्म किया था, उसे मैंने कोई सजा नहीं दी, केवल नाउम्मीदी जताई। उस व्यक्ति को इतना बुरा लगा कि उसने घर जाकर आत्महत्या की। दूसरे आदमी की चमडी थोडी मोटी थी इसलिए उसे मैंने एक साल की सजा सुनाई।'
एक दरबारी से रहा नहीं गया। वह बोला, 'लेकिन महाराज, तीसरे व्यक्ति को जो सजा सुनाई गई वह बेहद कठोर है।'
उसकी बात सुन कर राजा मुस्कुराया। कहा, 'आप लोग कारागृह में जाकर एक बार उस आदमी से मुलाकात कीजिए। हो सकता है, उसे मैंने इतनी कठोर सजा क्यों दी यह बात आपकी समझ में आ जाए।'
कुछ दरबारीगण कारागार में अपने सजायाफ्ता सहयोगी से मिलने पहुंचे।
वे यह देख कर हैरान रह गए कि उस आदमी के चेहरे पर शर्मिंदगी का नामोनिशान भी नहीं था। गधे पर उल्टा बिठा कर पूरे नगर में घुमाने का, कोडे की मार खाने का और बीस साल के कारावास की सजा मिलने का उसे जरा भी रंज नहीं था। वह बड़े मजे में था। मिलने आए अपने पुराने सहयोगियों से वह बोला, 'केवल बीस सालों की ही तो सजा सुनाई है, यूं देखते देखते समय बीत जाएगा। और मैंने इतना कमा कर रखा है कि अगली सात पुश्तों तक हमारे खानदान में किसीको कोई काम करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। ऐश से जी सकते हैं हम! और वैसे यह कहने भर को ही कारागार है, यहां किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं है...'
एक दरबारी ने पूछा, 'चौक में, सबके सामने खडे कर तुम्हें कोडे लगाए गए, सब दूर आपकी बदनामी हुई....'
उसे बीच में ही टोकते हुए वह आदमी बोला, 'बदनामी में भी नाम तो होता ही है! मैं तो मशहूर हो गया हूं! आज पूरे नगर में लोग मेरे ही बारे में बोल रहे होंगे....'
दरबारियों को मानना ही पड़ा कि राजा ने सही न्याय किया था।
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दवा की खुराक हर व्यक्ति के लिए अलग होती है।
सजा के साथ भी यही है।
कुछ लोग बदनामी से डरते हैं, कुछ लोगों को लगता है, जो हो, नाम तो हुआ अपना।
बड़ी आम धारणा है, लक्ष्मीजी जिस किसी तरह से आएं, उनका स्वागत ही किया जाना चाहिए।
कुछेक लोग आज भी मानते हैं कि कमाई के जरिए में खोट हो तो धन फलता नहीं, इसलिए कमाई का जरिया हमेशा सही होना चाहिए।
ढाक के तीन पात होते होंगे, आदमजाद का हर नमूना नायाब होता है।