शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

जिस दिन प्रेम जगा

-संध्या पेडणेकर
विश्व की महिला संतों में सूफी संत राबिया एक महत्वपूर्ण नाम है। एक बार राबिया के घर एक और फकीर आकर ठहरा था। जिस धर्म ग्रंथ को पढ़ रही थी उसमें से एक पंक्ति राबिया ने काट दी यह उसने देखा। उसे बहुत अचरज हुआ। लगा, यह राबिया तो बड़ी दुस्साहसी है। धर्मग्रंथ को सुधार रही है?
उसने राबिया से पूछा, तुम इस धर्मग्रंथ से पंक्ति को क्यों काट रही हो?
राबिया ने वह पंक्ति काट दी थी जिसमें लिखा हुआ था – शैतान से घृणा करो। राबिया ने जवाब दिया, मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गई हूं। जिस दिन से मेरे अंदर परमात्मा के लिए प्रेम जागा है उस दिन से मेरे अंदर की नफरत गायब हो गई है। चाहूं तब भी मैं किसीसे – शैतान से भी नफरत नहीं कर सकती। मैं सिर्फ प्रेम ही कर सकती हूं।  मेरे मन में जब से प्रेम जगा है तभी से नफरत को मैंने नदारद पाया। नफरत ही नहीं तो मैं किससे और कैसे नफरत कर सकती हूं? इसीलिए, धर्मग्रंथ की यह पंक्ति मुझे जंची नहीं और मैंने उसे मिटा दिया।
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मन से नफरत की विदाई...
आज के समय की क्या यह सबसे बड़ी ज़रूरत नहीं है?
नफरत नहीं तो नफरत के साथ जुड़ी कोई दुर्भावना नहीं।
दुर्भावना नहीं तो उसके कारण होनेवाले दुष्कृत्य नहीं।
धर्म का असली काम यही है। आराध्य के सहारे हर मन के गलियारे में प्रेम का दीप जलाना।
विचारों की आवाजाही से पटे पडे मन के चौक को प्रेम से रोशन करना।
प्रेम की रोशनी जगे तो नफरत को विदा होने में देर ही कितनी लगेगी?