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संध्या पेडणेकर
नॉन इन बहुत वर्षों तक अपने गुरु के साथ रहा। एक दिन गुरु ने उससे कहा, मेरे साथ रह कर तुम जितना ज्ञान प्राप्त कर सकते थे वह तुमने कर लिया है। अब अंतिम पाठ पढ़ने के लिए तुम्हें दूसरे गुरू के पास जाना होगा।
नॉन इन को लगा कि उसे एक ऐसे व्यक्ति के पास भेजा जा रहा है जो उसके गुरु से महान है।
लेकिन गुरू ने जिस व्यक्ति के पास भेजा था उसे देख कर वह उदास हुआ।
उसका नया गुरू एक सराय का द्वारपाल था।
नॉन इन को बड़ी निराशा हुई। उसे लगा, क्या यह आदमी मुझे समापन संस्पर्श दे पाएगा? वह बड़ी लंबी यात्रा करके आया था सो उसने सोचा, कुछ दिन ठहर कर विश्राम ही कर लेते हैं। उसने सराय के दरबान को गुरू की दी हुई चिट्ठी दी।
दरबान बोला, मैं पढ़ नहीं सकता। इसे तुम ही रख लो। तुम चाहो तो यहां ठहर सकते हो।
नॉन इन ने कहा, मेरे गुरू ने मुझे आपके पास कुछ सीखने के लिए भेजा है।
दरबान ने कहा, मैं तुम्हें कुछ पढ़ा नहीं सकता। मैं इस सराय का दरबान हूं। मैं कोई गुरू नहीं हूं। लेकिन जब नॉन इन जिद पर अड़ गया तो दरबान ने कहा, तुम चाहो तो यहां ठहर सकते हो। मैं जो काम करता हूं वह ध्यान से देखते रहना, हो सकता है कुछ सीख जाओ।
लेकिन ध्यान से देखने के लिए वहां कुछ भी नहीं था। सराय में आनेवाले लोगों का वह दरबान स्वागत करता। उनकी ज़रूरत की चीजें भंडार से निकाल कर देता। वे जब चले जाते तब सभी चीजों को साफ करके रखता। फिर दूसरे दिन वही क्रम। सराय में कभी कोई ठहर जाता तो उनकी ज़रूरत के अनुसार वह सफाई आदि कर देता।
तीसरे दिन नॉन इन वापिस लौट आया।
नाराज होते हुए वह अपने गुरू से बोला, क्यों मुझे आपने इतनी दूर की यात्रा पर भेजा? जिससे ज्ञान का अंतिम पाठ पढ़ने भेजा था वह तो एक सराय का दरबान था। उसने मुझसे कहा कि मैं ध्यान से देखूं लेकिन ध्यान से देखने के लिए वहां कुछ नहीं था। क्या सीखता मैं वहां? इसलिए लौट आया।
गुरू ने कहा, तीन दिन तुम वहां थे, तुमने कुछ तो देखा होगा?
नॉन इन ने बताया, मैंने देखा कि रात को वह हांडियां-बर्तन साफ करता है, उन्हें ठीक से जमा कर रखता है फिर सुबह उठ कर यात्रियों की ज़रूरत के मुताबिक उन्हें चीजें देता है और रात फिर चीजों को साफ करके रखता है।
गुरू ने कहा, यही तो, मैं तुम्हें यही शिक्षा देना चाहता था। तुम्हारी शिक्षा का अंतिम पाठ यही है। जो काम अपने हिस्से आता है उसे पूरी ईमानदारी से, सफाई के साथ करते रहना चाहिए। तुम अपनी शुद्धता को लेकर अभिमानी हो गए थे। निरंतर सफाई और नित्यकर्म की ज़रूरत तुम भूल गए थे।