-संध्या पेडणेकर
एक गांव में एक मोची रहता था। उसके पेट में बड़े जोर का दर्द उठा। दर्द बढ़ता ही गया तो वह गांव के वैद्य के पास गया। वैद्य ने देखा कि रोग अपनी समझ से परे है सो उसने मोची से कहा, 'बेटा, माफ करना लेकिन तुम्हारी बीमारी मैं समझ नहीं पा रहा हूं। इसलिए मैं दवा नहीं दे सकता।'
मोची ने इसका गलत मतलब निकाला। उसे लगा कि वैद्य ने कहा कि उसका रोग लाइलाज है। वह दुखी मन से घर लौटा।
उसे सिरके में बना प्याज का अचार बहुत पसंद था। उसने सोचा, पता नहीं इस लाइलाज बीमारी से मैं उठूंगा कि नहीं। जी भर के एक बार यह अचार खा लूं।
वह अचार खाने बैठा। देखते देखते उसने साल भर के लिए बना अचार खा लिया।
आश्चर्य की बात कि उसका पेटदर्द ठीक हुआ।
दो-चार दिन बाद वैद्य को खयाल आया कि चल कर देख लूं कि मोची के पेटदर्द का क्या हाल है। मोची का हाल देख कर वह आश्चर्यचकित हुआ। उसने देखा कि मोची तंदुरुस्त है और अपना काम कर रहा है।
उसने मोची से पूछा तब मोची ने अचार खाने की बात बताई। वैद्य को लगा, चलो, एक नया नुस्खा हाथ आया है। घर जाकर उसने अपनी पोथी में लिख रखा कि जब समझ में न आनेवाला पेटदर्द हो तो सिरके में बना प्याज का अचार खाने से आदमी ठीक हो जाता है।
कुछ समय बाद उसके पास एक दर्जी पेटदर्द की शिकायत लेकर पहुंचा। वैद्य ने जांचा लेकिन बीमारी का कारण पकड़ में नहीं आया। तब उसने दर्जी से कहा, बाजार जाकर सिरके में बना अचार किलोभर खरीद लो और खा जाओ।
दर्जी ने वही किया। उसने थोड़ा-सा अचार ही खाया कि असहनीय पीडा़ से बिलबिलाने लगा। लेकिन दर्जी को वैद्य पर भरोसा था। वह अचार खाता गया । अभी पाव भर अचार उसने खाया होगा कि उसका पेटदर्द ऐसे बढ़ा कि वह मर गया।
एक गांव में एक मोची रहता था। उसके पेट में बड़े जोर का दर्द उठा। दर्द बढ़ता ही गया तो वह गांव के वैद्य के पास गया। वैद्य ने देखा कि रोग अपनी समझ से परे है सो उसने मोची से कहा, 'बेटा, माफ करना लेकिन तुम्हारी बीमारी मैं समझ नहीं पा रहा हूं। इसलिए मैं दवा नहीं दे सकता।'
मोची ने इसका गलत मतलब निकाला। उसे लगा कि वैद्य ने कहा कि उसका रोग लाइलाज है। वह दुखी मन से घर लौटा।
उसे सिरके में बना प्याज का अचार बहुत पसंद था। उसने सोचा, पता नहीं इस लाइलाज बीमारी से मैं उठूंगा कि नहीं। जी भर के एक बार यह अचार खा लूं।
वह अचार खाने बैठा। देखते देखते उसने साल भर के लिए बना अचार खा लिया।
आश्चर्य की बात कि उसका पेटदर्द ठीक हुआ।
दो-चार दिन बाद वैद्य को खयाल आया कि चल कर देख लूं कि मोची के पेटदर्द का क्या हाल है। मोची का हाल देख कर वह आश्चर्यचकित हुआ। उसने देखा कि मोची तंदुरुस्त है और अपना काम कर रहा है।
उसने मोची से पूछा तब मोची ने अचार खाने की बात बताई। वैद्य को लगा, चलो, एक नया नुस्खा हाथ आया है। घर जाकर उसने अपनी पोथी में लिख रखा कि जब समझ में न आनेवाला पेटदर्द हो तो सिरके में बना प्याज का अचार खाने से आदमी ठीक हो जाता है।
कुछ समय बाद उसके पास एक दर्जी पेटदर्द की शिकायत लेकर पहुंचा। वैद्य ने जांचा लेकिन बीमारी का कारण पकड़ में नहीं आया। तब उसने दर्जी से कहा, बाजार जाकर सिरके में बना अचार किलोभर खरीद लो और खा जाओ।
दर्जी ने वही किया। उसने थोड़ा-सा अचार ही खाया कि असहनीय पीडा़ से बिलबिलाने लगा। लेकिन दर्जी को वैद्य पर भरोसा था। वह अचार खाता गया । अभी पाव भर अचार उसने खाया होगा कि उसका पेटदर्द ऐसे बढ़ा कि वह मर गया।
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प्रकृति ने हर व्यक्ति को अलग बनाया है। हर व्यक्ति की प्रकृति अलग होती है। इसलिए, ज़रूरी नहीं कि एक व्यक्ति पर लागू इलाज दूसरे पर भी ठीक उसी तरह का असर दिखाए। कई बार ठीक विपरीत असर भी हो सकता है जैसे कि इस कहानी में हम देखते हैं।
तो क्या वैद्य ग़लत था?
उस पर भरोसा करनेवाले बीमार व्यक्ति ग़लत थे?
- दोनों सवालों के जवाब नहीं में ही होंगे।
उस पर भरोसा करनेवाले बीमार व्यक्ति ग़लत थे?
- दोनों सवालों के जवाब नहीं में ही होंगे।
न वैद्य का दर्जी को इलाज बताते हुए कोई गलत इरादा था।
दरअसल, इलाज का सारा विज्ञान अनुमान पर ही आधारित होता है। लक्षण देख कर उपाय बताए जाते हैं।
खुद वैद्य में और बीमार व्यक्तियों में यह समझ होना ज़रूरी है।
अव्वल तो, अपने शरीर के बारे में हर किसीको थोड़ीबहुत जानकारी होना ज़रूरी है।
इसप्रकार व्यक्ति इलाज पाने में वैद्य की मदद भी कर सकता है और वैद्य से बताए गए इलाज लागू हो रहे हैं कि नहीं यह भी जान सकता है।
दरअसल, इलाज का सारा विज्ञान अनुमान पर ही आधारित होता है। लक्षण देख कर उपाय बताए जाते हैं।
खुद वैद्य में और बीमार व्यक्तियों में यह समझ होना ज़रूरी है।
अव्वल तो, अपने शरीर के बारे में हर किसीको थोड़ीबहुत जानकारी होना ज़रूरी है।
इसप्रकार व्यक्ति इलाज पाने में वैद्य की मदद भी कर सकता है और वैद्य से बताए गए इलाज लागू हो रहे हैं कि नहीं यह भी जान सकता है।