सोमवार, 5 अगस्त 2013

श्रीमती रूथ

– संध्या पेडणेकर
खलील जिब्रान की एक और कहानी सुनिए-
तीन व्यक्ति यात्रा पर निकले थे। दूर से उन्होंने देखा कि हरी-भरी पहाड़ी पर एक खूबसूरत सफेद महल है। तीनों में बातचीत होने लगी। 
एक ने कहा, - 'जानते हो, यह श्रीमती रूथ का घर है। वह पुरानी जादुगरनी है।'
दूसरे ने कहा, - 'हां घर तो श्रीमती रूथ का ही है लेकिन उनके बारे में तुम ग़लत कह रहे हो। वह तो एक बेहद खूबसूरत महिला है। हमेशा सपनों में डूबी रहती है।'
तीसरे ने कहा, 'खूबसूरत तो वह हैं लेकिन मैंने सुना है कि वह बहुत क्रूर हैं। यह आसपास की सारी जमीन उन्हींकी है और इस जमीन पर काम करनेवाले किसानों का वह खून चूस लेती हैं।'  
बतियाते हुए वह आगे बढ़े। गांव में पहुंचे तो चौक में उन्हें एक बूढ़ा मिला। उससे उन्होंने पूछा, -'उस सफेद महल में रहनेवाली श्रीमती रूथ के बारे में क्या आप कुछ बता सकते हैं?'
उस बूढ़े व्यक्ति ने उनसे कहा, -'हां, वहां श्रीमती रूथ रहा करती थीं। मैंने अपने बचपन में उनके बारे में बहुत सुना था। उन्हें मैंने देखा भी था। लेकिन उन्हें गुजरे तो अस्सी वर्ष हो गए हैं लगभग। मैं नब्बे वर्ष का हूं और मैं जब दस वर्ष का था तब उनकी मौत हुई थी। तब से वह मकान बिल्कुल खाली पड़ा है। कभी कभी वहां उल्लू बोलते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि वहां प्रेत रहते हैं।'
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जिससे पार न पाया जा सके वह स्त्री पुरुष के लिए एक अबूझ पहेली होती है। ऐसी पहेली जिसके बारे में किसी भी बात पर विश्वास करने में या उसके बारे में अफवाहें फैलाने में पुरुष को कोई झिझक नहीं होती।
स्त्री को इन्सान न माननेवालों के लिए वह एक पहेली बन जाती है।
अपनी श्रेष्ठता के दंभ में कुछ पुरुष उसे पैर की जूती मानते हैं।
अपने हीनताबोध के कारण कुछ पुरुष उसे देवि मानते हैं।
अपनी अकर्मण्यता के कारण कुछ पुरुष उसे जादूगरनी या डायन मानते हैं।
उसके प्रति अपनी तीव्र लालसा के वशीभूत हो कभी पुरुष उसे कविता कहते हैं।
उसूलों के प्रति पक्के होने के कारण कुछ पुरुषों को वह रक्तपिपासू लगती है।
हां, जो लोग उसे इन्सान मानते हैं उन्हें उसके स्त्री होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।     
ऐसे लोग उसे अपनी ही तरह जीवनयात्रा पर निकली यायावर मानते हैं और साथ चलते हैं।