शनिवार, 7 जुलाई 2012

हारा हुआ नेपोलियन


-संध्या पेडणेकर
हारे हुए नेपोलियन को सेंट हेलेना नाम के एक द्वीप पर बंदी बना कर रखा गया था। उसके साथ उसका डॉक्टर भी था। नेपोलियन की विजय यात्रा में भी डॉक्टर उसके साथ रहा था। साधारण कैदी के रूप में रहनेवाले नेपोलियन को देख कर उसे बड़ा दुख होता।
एक दिन नेपोलियन और डॉक्टर द्वीप पर घूमने निकले। वे दोनों एक छोटी-सी पगडंडी से निकल रहे थे। तभी खेतों के बीच से होती हुई एक घसियारिन उनके सामने आ गई। उसके सिर पर घास का गठ्ठर लदा था जिसके नीचे उसका आधा चेहरा छिपा था। वह ठीक से देख नहीं पा रही थी.
डॉक्टर ने  चिल्ला कर उससे कहा, 'हट जा, हट जा रास्ते से। जानती भी है कौन आ रहा है? नेपोलियन आ रहा है!'
घसियारिन कुछ समझ पाए इससे पहले नेपोलियन ने डॉक्टर का हाथ पकडा और उसे खींच कर पगडंडी के किनारे ले गया।
घसियारिन उनके पास से होकर आगे निकली। इतने पास से कि उसके सिर पर रखे घास के गठ्ठर से निकले कुछ तिनकों ने डॉक्टर और नेपोलियन को छुआ।
डॉक्टर व्यथित हुआ। लेकिन नेपोलियन पर इसका कुछ असर नहीं हुआ।
उसने डॉक्टर को समझाया, 'प्यारे, अब सपना बीत गया है। होश में आ जाओ। वे दिन लद गए जब हम पहाड से भी कहते कि हट जाओ, नेपोलियन आ रहा है तो पहाड को हटना पडता। अब तो, घसियारिन के लिए भी हमें हट जाना चाहिए।'
नेपोलिन हार-जीत के सही मायने जानता था। हार कर भी वह वही था जो जीत कर हुआ करता था।
हां, डॉक्टर को बहुत बुरा लगा। यह देख कर कि एक मामूली घसियारन के लिए नेपोलियन को रास्ते से हटना पडा।
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इंसान की सोच के दायरे होते हैं। कुछ संकरे, कुछ थोडे फैले, तो कुछ विस्तृत।
सोच का दायरा जितना विशाल व्यक्ति की महत्ता उसी अनुपात में अधिकाधिक होती है।
मसलन, आम आदमी की नज़र में कोई अफसर होता है, कोई रिक्शेवाला, कोई सब्जीवाला, कोई प्रधानमंत्री, कोई औरत, कोई दलित, कोई ब्राह्मण लेकिन जो यह जानता है कि इन सभी भेदों से परे हर शरीर में एक आत्मा बसती है जो उसी परमात्मा का एक अंश है तब वह आदमी आम नहीं रह जाता।
इंसान को हमेशा अपनी सोच के दायरे से परे निकलने की कोशिश करते रहना चाहिए।
और कि, इस कहानी में नेपोलियन जानता था, सपनों के बीत जाने से ज़िंदगी की शाम नहीं ढलती। तो क्यों सपने बीत जाने पर ज़िंदगी से तौबा कर लें?
हरिवंशरायजी कह गए हैं -
"पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है....
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है...
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है.... "
जीवन रूपी मधु के जो चहेते हैं उनके लिए टूटे सपने नहीं जीवन अहमियत रखता है। यह जानते हुए भी कि मिट्टी के बने घट फूटा ही करते हैं, सपने टूटा भी करते हैं जीवन से जिसे सच्चा प्रेम है वह जीवन का साथ निभाता है। 
क्योंकि, जीवन सपनों से ऊंचा है।** 
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**कविता है - -हरिवंशराय बच्चन 


जो बीत गई सो बात गई

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया

अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम
थे उसपर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुवन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुर्झाई कितनी वल्लरियाँ
जो मुर्झाई फिर कहाँ खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आँगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठतें हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिटटी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई.
(धन्यवादसहित - http://hindizen.com/2010/05/04/jo-beet-gai-so-baat-gai/)