-संध्या पेडणेकर
समीर का एक छोटा गाराज था। उसीसे उसकी रोजी-रोटी चलती थी।
एक दिन उसके बचपन का दोस्त लकी उससे मिलने आया।
समीर की शानदार गाडी की उसने तारीफ की। घूम घूम कर वह गाडी का मुआयना कर रहा था। एक जगह वह चौंका, पल भर रुका, कुछ पूछने को हुआ लेकिन फिर उसने अपना इरादा बदल दिया।
लेकिन उसी गाडी पर सवार होकर जब वे लंबी ड्राइव पर निकले तब लकी से रहा नहीं गया। उसने पूछा, 'यार समीर, एक बात पूछता हूं बुरा मत मानना। भई तुम्हारा अपना गराज है, फिर भी तुम्हारी इस शानदार कार पर एक जगह उखडे हुए रंग को, थोडे पिचके दरवाजे को तुमने ठीक क्यों नहीं कराया?'
समीर ने कहा, 'वह एक कहानी है लकी। चाहूं तो मैं भी अपने गराज में अपनी गाडी को ठीक करा सकता हूं। लेकिन मैंने जान-बूझ कर उस निशान को मिटाया नहीं है।'
लकी ने जोर दिया तब समीर ने उस निशान से जुड़ा वाकया बताया। उसने कहा, 'मैंने उन दिनों नई-नई गाडी खरीदी थी। एक दिन गाडी में बैठ कर मैं लंबी ड्राइव पर निकला। गाडी हवा से बातें कर रही थीं, मुझे बड़ा मजा आ रहा था। मेरा दिमाग सातवें आसमान पर था। गति का नशा-सा मुझ पर छाया हुआ था।'
तभी दूर एक जगह रास्ते के किनारे खड़ी गाडियों के बीच मुझे कुछ हलचल सी दिखाई दी। उस तरफ ध्यान देने के मूड में मैं नहीं था। मेरी कार फर्राटे से आगे बढ़ी कि एक ईंट आकर दरवाजे से टकराई। खच्च् से ब्रेक लगा कर मैं बाहर निकला। आगबबूला हुआ जा रहा था मैं।'
'देखा कि, सड़क के किनारे एक छोटा बच्चा सहमा हुआ खड़ा है। वह रो रहा था। लेकिन उसके रोने का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। मेरी प्यारी गाडी को उसने ईंट मार कर पिचका दिया था। मैं उस पर बरस पड़ा - जानते हो, तुमने मेरा कितना नुकसान किया है? क्यों फेंकी तुमने वह ईंट? देखो, मेरी कार का शीशा तो टूट ही गया है, दरवाजा भी पिचक गया है और उस पर खरोंचे भी आई हैं।....'
'मेरा भाई... मेरा भाई व्हील चेयर से गिर गया है। वह मुझसे बड़ा है.... उसे वापिस व्हील चेयर में मैं बैठा नहीं पा रहा हूं, वह मुझसे संभल नहीं रहा। मैंने कई गाड़ियों को इशारा किया लेकिन किसीने अपनी गाडी रोकी नहीं।...मेरे भाई को उठा कर व्हील चेयर में बिठाने में मेरी मदद कीजिए, प्लीज....।'
'बच्चे का चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था। मैंने सुना और तभी मेरा ध्यान लुढ़की हुई व्हील चेयर और उससे लटके बच्चे की तरफ गया। गति के मेरे नशे पर मानो घडों पानी गिरा। अपनी और अपने जैसे अन्यों की स्पीड के प्रति पागलपन पर मुझे ग्लानि हुई।'
'आज हम ऐसी गति से भागे चले जा रहे हैं कि हमारे पास कहीं देखने की फुर्सत नहीं। किसीको अपनी ज़रूरत भी हो सकती है इसका हमें खयाल ही नहीं। हमें अहसास नहीं कि कभी उनकी जगह हम खुद भी हो सकते हैं।
भगवान भी शायद फुसफुसा कर हमें चेताने की कोशिश करता है, लेकिन हमारे पास जब उसकी सुनने के लिए भी फुर्सत नहीं होती तब वह ईंट की मार से चेताता है। यह बात हमेशा याद रहे इसलिए मैंने यह निशान ठीक नहीं करवाया। कार के इस निशान पर जब मेरी नज़र जाती है तब अपने बड़े भाई को ठेल कर ले जाता हुआ वह बच्चा मुझे दिखाई देता है।'
हर कोई अंधाधुंध भागा चला जा रहा है, सरपट, बेतहाशा।
बहुत कुछ हासिल करना है हमें अपनी ज़िंदगी से।
मन को संवेदनशील बनाए रखने के लिए क्या ईंट की मार खाना ज़रूरी है?
इंसान हैं, सो हमें इंसान बने रहना चाहिए, क्यों?
समीर का एक छोटा गाराज था। उसीसे उसकी रोजी-रोटी चलती थी।
एक दिन उसके बचपन का दोस्त लकी उससे मिलने आया।
समीर की शानदार गाडी की उसने तारीफ की। घूम घूम कर वह गाडी का मुआयना कर रहा था। एक जगह वह चौंका, पल भर रुका, कुछ पूछने को हुआ लेकिन फिर उसने अपना इरादा बदल दिया।
लेकिन उसी गाडी पर सवार होकर जब वे लंबी ड्राइव पर निकले तब लकी से रहा नहीं गया। उसने पूछा, 'यार समीर, एक बात पूछता हूं बुरा मत मानना। भई तुम्हारा अपना गराज है, फिर भी तुम्हारी इस शानदार कार पर एक जगह उखडे हुए रंग को, थोडे पिचके दरवाजे को तुमने ठीक क्यों नहीं कराया?'
समीर ने कहा, 'वह एक कहानी है लकी। चाहूं तो मैं भी अपने गराज में अपनी गाडी को ठीक करा सकता हूं। लेकिन मैंने जान-बूझ कर उस निशान को मिटाया नहीं है।'
लकी ने जोर दिया तब समीर ने उस निशान से जुड़ा वाकया बताया। उसने कहा, 'मैंने उन दिनों नई-नई गाडी खरीदी थी। एक दिन गाडी में बैठ कर मैं लंबी ड्राइव पर निकला। गाडी हवा से बातें कर रही थीं, मुझे बड़ा मजा आ रहा था। मेरा दिमाग सातवें आसमान पर था। गति का नशा-सा मुझ पर छाया हुआ था।'
तभी दूर एक जगह रास्ते के किनारे खड़ी गाडियों के बीच मुझे कुछ हलचल सी दिखाई दी। उस तरफ ध्यान देने के मूड में मैं नहीं था। मेरी कार फर्राटे से आगे बढ़ी कि एक ईंट आकर दरवाजे से टकराई। खच्च् से ब्रेक लगा कर मैं बाहर निकला। आगबबूला हुआ जा रहा था मैं।'
'देखा कि, सड़क के किनारे एक छोटा बच्चा सहमा हुआ खड़ा है। वह रो रहा था। लेकिन उसके रोने का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। मेरी प्यारी गाडी को उसने ईंट मार कर पिचका दिया था। मैं उस पर बरस पड़ा - जानते हो, तुमने मेरा कितना नुकसान किया है? क्यों फेंकी तुमने वह ईंट? देखो, मेरी कार का शीशा तो टूट ही गया है, दरवाजा भी पिचक गया है और उस पर खरोंचे भी आई हैं।....'
'मेरा भाई... मेरा भाई व्हील चेयर से गिर गया है। वह मुझसे बड़ा है.... उसे वापिस व्हील चेयर में मैं बैठा नहीं पा रहा हूं, वह मुझसे संभल नहीं रहा। मैंने कई गाड़ियों को इशारा किया लेकिन किसीने अपनी गाडी रोकी नहीं।...मेरे भाई को उठा कर व्हील चेयर में बिठाने में मेरी मदद कीजिए, प्लीज....।'
'बच्चे का चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था। मैंने सुना और तभी मेरा ध्यान लुढ़की हुई व्हील चेयर और उससे लटके बच्चे की तरफ गया। गति के मेरे नशे पर मानो घडों पानी गिरा। अपनी और अपने जैसे अन्यों की स्पीड के प्रति पागलपन पर मुझे ग्लानि हुई।'
'आज हम ऐसी गति से भागे चले जा रहे हैं कि हमारे पास कहीं देखने की फुर्सत नहीं। किसीको अपनी ज़रूरत भी हो सकती है इसका हमें खयाल ही नहीं। हमें अहसास नहीं कि कभी उनकी जगह हम खुद भी हो सकते हैं।
भगवान भी शायद फुसफुसा कर हमें चेताने की कोशिश करता है, लेकिन हमारे पास जब उसकी सुनने के लिए भी फुर्सत नहीं होती तब वह ईंट की मार से चेताता है। यह बात हमेशा याद रहे इसलिए मैंने यह निशान ठीक नहीं करवाया। कार के इस निशान पर जब मेरी नज़र जाती है तब अपने बड़े भाई को ठेल कर ले जाता हुआ वह बच्चा मुझे दिखाई देता है।'
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गाडी हर किसीके पास नहीं होती, लेकिन गतिशील आज हर कोई है।हर कोई अंधाधुंध भागा चला जा रहा है, सरपट, बेतहाशा।
बहुत कुछ हासिल करना है हमें अपनी ज़िंदगी से।
मन को संवेदनशील बनाए रखने के लिए क्या ईंट की मार खाना ज़रूरी है?
इंसान हैं, सो हमें इंसान बने रहना चाहिए, क्यों?