-संध्या पेडणेकर
दुनिया को जीतने की महत्वाकांक्षा पालनेवाला जगज्जेता सिकंदर महान मरा.
उसकी जब अर्थी निकली तो लोग यह देख कर हैरान हो गए कि उसके दोनों हाथ अर्थी से बाहर दोनों तरफ लटके हुए थे।
सिकंदर महान की अर्थी थी। देखने के लिए लाखों लोग जुटे थे। सबके मन में यही भाव था कि इतने महान सम्राट की अर्थी इतनी लापरवाही से कैसे सजायी गई? उसके दोनों हाथ तो बाहर ही रह गए हैं!
होते होते लोगों को पता चल गया कि ऐसा लापरवाही के कारण नहीं हुआ था, जान-बूझ कर किया गया था। यह तो सिकंदर महान की ही इच्छा थी कि उसकी अर्थी के दोनों तरफ उसके दो हाथ लटकने दिए जाएं ताकि लोग साफ साफ देख सकें। पता चले लोगों को कि औरों की तरह ही सिकंदर भी खाली हाथ ही जा रहा है। उसके हाथ भी खाली ही हैं। ज़िंदगी भर की उसकी दौड़ बेकार ही साबित हुई।
मरने से करीब दसेक वर्ष पहले सिकंदर प्रसिद्ध यूनानी फकीर डायोजनीज से मिलने गया था। सिकंदर की दुनिया जीतने की महत्वाकांक्षा के बारे में डायोजनीज जानता था। उसने सिकंदर से पूछा था, 'सोचो सिकंदर, अगर पूरी दुनिया जीत लोगे तो फिर क्या करोगे?'
सुन कर सिकंदर उदास हो गया। उसने डायोजनीज से कहा, 'मैं खुद सोच कर परेशान हो जाता हूं। दूसरी दुनिया तो है नहीं। इस दुनिया को जीत लूंगा तो क्या करूंगा फिर मैं?'
उसने अभी पूरी दुनिया जीती नहीं थी लेकिन लोभ और अहं इतना कि पूरी दुनिया जीतने के बाद भी वासना उदास होगी!
पहुंचा हुआ जुआरी था सिकंदर। अपना सब कुछ दांव पर लगा कर उसने बहुत कुछ जीता। धन-संपत्ति के ढ़ेर लगाए। लेकिन मरते वक्त उसका कहना कि, देख लें लोग, मेरे हाथ खाली हैं.....मरते वक्त ही सही बहुत कुछ जीत कर गया था सिकंदर।
दुनिया को जीतने की महत्वाकांक्षा पालनेवाला जगज्जेता सिकंदर महान मरा.
उसकी जब अर्थी निकली तो लोग यह देख कर हैरान हो गए कि उसके दोनों हाथ अर्थी से बाहर दोनों तरफ लटके हुए थे।
सिकंदर महान की अर्थी थी। देखने के लिए लाखों लोग जुटे थे। सबके मन में यही भाव था कि इतने महान सम्राट की अर्थी इतनी लापरवाही से कैसे सजायी गई? उसके दोनों हाथ तो बाहर ही रह गए हैं!
होते होते लोगों को पता चल गया कि ऐसा लापरवाही के कारण नहीं हुआ था, जान-बूझ कर किया गया था। यह तो सिकंदर महान की ही इच्छा थी कि उसकी अर्थी के दोनों तरफ उसके दो हाथ लटकने दिए जाएं ताकि लोग साफ साफ देख सकें। पता चले लोगों को कि औरों की तरह ही सिकंदर भी खाली हाथ ही जा रहा है। उसके हाथ भी खाली ही हैं। ज़िंदगी भर की उसकी दौड़ बेकार ही साबित हुई।
मरने से करीब दसेक वर्ष पहले सिकंदर प्रसिद्ध यूनानी फकीर डायोजनीज से मिलने गया था। सिकंदर की दुनिया जीतने की महत्वाकांक्षा के बारे में डायोजनीज जानता था। उसने सिकंदर से पूछा था, 'सोचो सिकंदर, अगर पूरी दुनिया जीत लोगे तो फिर क्या करोगे?'
सुन कर सिकंदर उदास हो गया। उसने डायोजनीज से कहा, 'मैं खुद सोच कर परेशान हो जाता हूं। दूसरी दुनिया तो है नहीं। इस दुनिया को जीत लूंगा तो क्या करूंगा फिर मैं?'
उसने अभी पूरी दुनिया जीती नहीं थी लेकिन लोभ और अहं इतना कि पूरी दुनिया जीतने के बाद भी वासना उदास होगी!
पहुंचा हुआ जुआरी था सिकंदर। अपना सब कुछ दांव पर लगा कर उसने बहुत कुछ जीता। धन-संपत्ति के ढ़ेर लगाए। लेकिन मरते वक्त उसका कहना कि, देख लें लोग, मेरे हाथ खाली हैं.....मरते वक्त ही सही बहुत कुछ जीत कर गया था सिकंदर।
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कहते हैं, शरीर में एक सांस भी जब तक बाकी होती है तब तक पुण्यवान को अपने पुण्यों पर इतराना नहीं चाहिए और पापियों को अपने पापों के कारण निराश नहीं होना चाहिए।
मुक्ति एक पल में आप पर कृपावान हो सकती है।
पल भर में बेडा या तो पार हो सकता है या गरक।
या फिर,
पल भर में बेडा या तो पार हो सकता है या गरक।
या फिर,
कुछ ऐसा, कि-
पल पल को लेकर जीव को जागरुक रहना चाहिए।
पार होते होते न जाने किस पल उसका बेडा गर्क हो जाए...
बेडा गर्क होते होते न जाने कब तिनके के सहारे उबर जाने की मोहलत उसे नसीब हो...
पल पल को लेकर जीव को जागरुक रहना चाहिए।
पार होते होते न जाने किस पल उसका बेडा गर्क हो जाए...
बेडा गर्क होते होते न जाने कब तिनके के सहारे उबर जाने की मोहलत उसे नसीब हो...