शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012

अपने ही झूठ का शिकार


-संध्या पेडणेकर
एक बार क बूढा आदमी एक गांव से गुजर रहा था। उसका पुराने जमाने का ढीला-ढाला चोगा, लंबी सफेद दाढ़ी-मूंछें, झुर्रियों से भरा चेहरा उस गांव के बच्चों को अजीब लगा। पहले एक-दो और फिर धीरे धीरे दस-बारह शरारती बच्चे उसके पीछे पीछे चलने लगे। थोडी देर बाद उन्होंने रास्ते में पड़े कंकड उठा उठा कर बूढ़े की तरफ उछालना शुरू किया। बूढ़ा परेशान हुआ। उसने बच्चों को समझाने की कोशिश की लेकिन बच्चे शैतानी पर उतारू थे।
बूढ़ा भी चालाक था। उसने एक तरकीब की।
उसने बच्चों को पास बुलाया और कहा, तुम्हें पता है? आज राजा सबको दावत दे रहा है।
दावत और मिठाई की बात से बच्चे बहल गए। उन्होंने पूछा, आपको कैसे पता?’
बूढ़े ने कहा, ए लो! मुझे नहीं पता होगा? मैं भी तो उसी भोज में जा रहा हूं!’
फिर बूढ़े ने पिछली दावत में परोसे गए पकवानों का वर्णन करना शुरू किया। उनकी खुशबू, उनका स्वाद, परोसने के बर्तन, बैठने का ताम-झाम, तरह तरह के शरबत आदि।
वर्णन सुन कर बच्चे राजमहल की ओर चल दिए।
बूढ़े ने छुटकारे की सांस ली और वह धीमे धीमे अपनी राह पर चल निकला।
उम्र के कारण उसकी चाल अब बेहद धीमी हो चली थी।
कुछ ही दूर वह गया होगा कि कुछ गांववालों को उसने हड़बड़ी से महल की ओर जाते हुए देखा। उसने यूंही उनसे पूछा तो पता चला कि राजा सबको भोज दे रहा है और वे उसी भोज में शामिल होने जा रहे
हैं।
थोड़ा और आगे जाने पर उसे और लोग राजमहल की तरफ बढ़ते हुए दिखाई दिए। बूढ़े को लगा कहीं सचमुच राजा ने भोज का आयोजन तो नहीं किया है?
और आगे बढ़ा तो बहुत सारे लोगों को उसने राजमहल की ओर बढ़ते देखा। सब दावत खाने जा रहे थे इसका भी उसे पता चला।
अब बूढ़े के मन में द्वंद्व पैदा हुआ। उसने सोचा, मैंने तो बच्चों को टालने के लिए गपबाजी की थी, कहीं ऐसा तो नहीं कि राजा सचमुच दावत दे रहा हो?
फिर उसे राजा की पिछली दावत के पकवान याद ने लगे। उस दावत का पूरा नूर उसकी आंखों के आगे झलकने लगा। उसका मन मचलने लगा।
उसने सोचा, हो न हो, राजा दावत दे रहा है। और अगर नहीं भी दे रहा है तो जाकर देखने में हर्ज ही क्या है? सच, बहुत दिन बीते दावत उडाए। चलूं और देखूं तो सही कि इस बार की दावत के क्या रंग हैं?’
सोचते सोचते बूढ़ा अपना काम भूल गया और उसके पैर भी राजमहल की राह पर मुड़ गए।
---
अफवाहों और ठगी का यह पहला उसूल है।
वे अपने पैदा करनेवालों को भी नहीं बख्शतीं।
अफवाहें फैलाने वाले, दूसरों को ठगने वाले कब अपने ही फैलाए जाल में फंसेंगे कहा नहीं जा सकता।