सोमवार, 29 अक्टूबर 2012

दुनिया का डर

-संध्या पेडणेकर
टॉलस्टॉय एक बार अलस्सुबह उठ कर चर्च गए।
उन्होंने सोचा, हर बार जब मैं प्रार्थना करने जाता हूं तब चर्च में कई लोग होते हैं। आज भगवान से अकेले में बात करूं।
चर्च में उन्होंने देखा कि शहर का एक अमीर आदमी पहले से ईसा के सामने घुटने टेक कर बैठा हुआ है।
वह कह रहा था, 'हे भगवान, मैंने इतने पाप किए हैं कि अब मुझे कहते हुए भी शर्म आती है। क्षमा कर देना मुझे।...'
टॉलस्टॉय ने सोचा, कितना महान आदमी है यह। सच्चे दिल से अपने अपराधों को स्वीकार कर रहा है।
इतने में उस व्यक्ति की नज़र टॉलस्टॉय पर पड़ी।
हडबडाकर वह उठ कर खड़ा हुआ। बोला, 'महाशय, मैंने अभी भगवान के सामने जो कुछ कहा वह आपने सुना तो नहीं?'
टॉलस्टॉय ने कहा, 'हां सुना, और  मैं धन्य हो गया। इसतरह अपने अपराधों को स्वीकार कर तुम मेरे आदर के पात्र हो गए हो।'
उस आदमी ने कहा, 'वह सब तो ठीक है, लेकिन कृपया आप ये बातें किसी और से मत कहिएगा। यह तो मेरे और भगवान के बीच की बात थी। मैं नहीं चाहता कि कोई और हमारी बातें सुने। और अगर तुमने ये बातें किसीको बताईं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।'
टॉलस्टॉय ने आश्चर्य के साथ कहा, 'लेकिन अभी अभी तो आप भगवान के सामने...'
वह आदमी बोला, 'वह मेरे और परमात्मा के बीच था। दुनिया के लिए मैंने वह नहीं कहा था।'
टॉलस्टॉय सोचने लगे, 'कैसी दुनिया है, लोगों से डरती है, भगवान से नहीं!'
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हम कहते हैं कि भगवान सर्वव्यापी है, 
लेकिन उससे सानिध्य पाने के लिए हमें पूजाघर जाना पड़ता है। 
चराचरव्यापी भगवान को हम पूजाघरों के तालों में बंद कर रखते हैं... 
और बाहर निकलते ही दुनियादार बन जाते हैं।