शनिवार, 13 अक्टूबर 2012

वैराग्य में कमी

-संध्या पेडणेकर
भर्तृहरि राजा के बारे में पुराणों में एक कथा आती है। वैराग्यभाव से उन्होंने राज्य का त्याग किया तब पार्वती ने शंकर के सामने उनके त्याग की सराहना की। लेकिन शंकर ने कहा, 'उनके त्याग में कमी है।'
पार्वती ने पूछा, 'वह कैसे?'
शंकर ने कहा, 'भर्तृहरि ने भले राज्य का त्याग किया हो लेकिन संन्यासी जीवन की शुरुआत उन्होंने खाली हाथ नहीं की है। राजमहल से निकलते वक्त उन्होंने पानी के लिए पात्र, तकिया और हवा झलने के लिए पंखा साथ लिया।' इस पर पार्वती निरुत्तर हो गई।
कुछ समय बाद भर्तृहरि का वैराग्य गहराया तो साधना के क्रम में ये तीनों चीजें अपने आप छूट गईं। पार्वती ने फिर शिव से पूछा तो शिव ने कहा, 'अभी कमी है।'
पार्वती ने पूछा, 'अब क्या कमी है? अपने वैराग्य के अनुभव लोगों तक पहुंचाने के लिए वैराग्य शतक लिख रहे हैं, भिक्षा मांगना तक छोड़ दिया है। खाना जब मिलता है तो खा लेते हैं, नहीं मिलता तो नहीं खाते। लंबे समय तक भोजन नहीं मिलता तो पिंडदान के लिए आए आटे की रोटियां चिता की अग्नि पर सेंक कर खाते हैं। अब उनके वैराग्य में क्या कमी है?'
जानने के लिए शंकर-पार्वती भेस बदलकर भर्तृहरि के सामने उपस्थित हुए। बुढ़िया बनी पार्वती ने भर्तृहरि से खाना मांगा।
पिछले तीन दिनों से भर्तृहरि को भिक्षा नहीं मिली थी। आज थोड़ा आटा मिला था जिसकी वह रोटियां सेंक रहे थे। उन्होंने वृद्ध दंपति को बिठाया और सिंकी हुई सारी रोटियां उन्हें दे दीं।
पार्वती ने आंखों से ही शंकर से पूछा कि क्या अब इनका वैराग्य पूर्ण है?
शंकर ने आंखओं से ही कहा, 'नहीं।'
बूढे दंपति मे चल रहे आपसी इशारों के बारे में भर्तृहरि के मन में कौतुहल जगा। उन्होंने पूछा तब शंकर ने कहा, 'यह कह रही है कि हमने इस बेचारे की सारी रोटियां लीं। अब यह क्या खाएगा? हम आधी रोटियां इसे दे देते हैं।'
सुनते ही भर्तृहरि की भौंहें टेढी हो गईं। उन्होंने कहा, 'आप मुझे जानते नहीं। इतने बड़े साम्राज्य का मोह मैंने नहीं किया तो क्या चार रोटियों का मोह मैं करूंगा? ले जाइए, और सुखपूर्वक अपनी क्षुधा को शांत कीजिए। मुझे इसीमें संतोष है।'
शिव कुछ कहते इससे पहले पार्वती ने इस पर कहा, 'अब मैं समझी, भौतिक चीजों का त्याग भर्तृहरि ने किया लेकिन यश की आसक्ति और अहंकार का भाव इनमें अभी भी जागृत है। इनके वैराग्य में अभी कमी है भगवन्!'
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त्याग के प्रति अभिमान वैराग्य की राह में बाधा है। 
दान की भी हम रसीद चाहते हैं। 
याचक से उम्मीद करते हैं कि वह विनम्र रहे। 
चाहते हैं कि भगवान हमारे अच्छे कर्मों का हिसाब ज़रूर रखे!