मंगलवार, 8 मई 2012

गुरू की महानता


-संध्या पेडणेकर
एक बार कौटिल्य के पास एक युवक आया। 
उसने उनसे कहा, 'मैंने सुना है कि आप महान ज्ञानी हैं, अर्थशास्त्री हैं। कृपया मुझे अमीर बनने का गुर सिखा दीजिए।'  
कौटिल्य ने उससे कहा, 'दुनिया में दो तरह के ज्ञानी होते हैं- आत्मिक और भौतिक। तुम्हें जिस तरह की जरूरत है वह ज्ञान मैं तुम्हें अवश्य दूंगा। लेकिन उससे पहले तुम्हें एक छोटी-सी परीक्षा देनी होगी। तुम्हारे सामने फैली रेत में से तुम सफेद और काले रंग का एक-एक पत्थर चुनो। उन्हें अपनी थैली में रखो। मेरा एक शिष्य तुम्हारी थैली में से बिना देखे एक पत्थर चुनेगा। वह अगर सफेद पत्थर चुनेगा तो मैं तुम्हें भौतिक संपत्ति कमाने का ज्ञान दूंगा। वह अगर काला पत्थर चुनेगा तो तुम्हें मैं आध्यात्मिक संपत्ति कमाने का ज्ञान कराऊंगा।
उस युवक ने तुरंत नीचे झुक कर दो पत्थर उठाए और अपनी थैली में डाले। 
पत्थर उठाते समय कौटिल्य और उनके एक शिष्य ने देखा कि उसने दोनों पत्थर सफेद रंग के ही चुने थे क्योंकि उसे रुपया-पैसा कमाने की ही चाह थी। 
कौटिल्य ने उसी शिष्य को युवक की थैली से एक पत्थर चुनने को कहा। 
शिष्य ने युवक की थैली में हाथ डाला और मुठ्ठी बंद कर एक पत्थर बाहर निकाला। बंद मुठ्‌टी के साथ वह अपने गुरू की तरफ चला लेकिन चलते-चलते लडखडाकर गिर गया। उसकी मुठ्ठी खुली और पत्थर कहीं खो गया। 
आसपास पडे अन्य पत्थरों में से अब उसे ढूंढ निकालना मुश्किल था। 
युवक अपना राज खुल जाने के डर से सहमा हुआ था। 
कौटिल्य ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा, 'डरो मत, अपनी थैली से दूसरा पत्थर निकालो। उसका रंग देख कर तय किया जा सकता है कि मेरे शिष्य ने किस रंग का पत्थर उठाया था।'  
युवक की थैली से सफेद रंग का पत्थर निकला। 
कौटिल्य ने कहा, 'इसका मतलब है कि मेरे शिष्य ने काले रंग का पत्थर उठाया था। तुम्हें आत्मिक ज्ञान की जरूरत है। आज से तुम मेरे शिष्य बन जाना।
युवक ने दौड कर कौटिल्य के पैर पकड़ लिए और अपने किए की माफी मांगी। कौटिल्य ने कहा, 'वह गुरू ही क्या जो अपने शिष्य की असली जरूरतों के बारे में न जान सके।'
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धन्य वह गुरू और धन्य वह शिष्य। ...
कबीरजी कह गए हैं – 
        गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूं पाय।
        बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।।
गुरु श्रेष्ठ क्यों? क्योंकि गुरु बताता है कि क्या सही है, क्या ग़लत है, क्या ग्राह्य है और क्या अग्राह्य। गोविंद तक पहुंचानेवाली राह का पथप्रदर्शक है गुरु। गुरु के बिना बेडा पार लगना असंभव।
यह दुनिया, जहां पग पग पर छल, माया, प्रपंच का जाल बिछा हो और उस पर डाला चुग्गा चुगने के लिए दुनियावी भूलभुलैय्या में लिप्त मन आतुर खड़ा हो वहां गुरु के मार्गदर्शन के बगैर श्वेत-श्याम की पहचान संभव नहीं। 
जिस चेले को ऐसे गुरु की प्राप्ति हो वह परम भागी। कबीर कहते हैं ऐसे गुरु की महति वर्णन करने के लिए -
       
सब धरती कागज करू, लेखन सब बनराई
        सात समंद की मसि करू, गुरु गुण लिखा ना जाई।।