शुक्रवार, 18 मई 2012

सीख


-संध्या पेडणेकर
एक आदमी के घर के आंगन में एक बडा पेड था।
पेड पूरे आंगन पर छाया हुआ था और घर पर भी उसकी छांव थी।
लेकिन उसके पडोसी का कहना था कि इस तरह घर और आंगन को घेरनेवाले पेड अशुभ होते हैं। उसके असर से घर में कुछ अशुभ घटे इससे पहले उसे काट देना चाहिए।
पडोसी की बातों में आकर उस व्यक्ति ने अपने आंगन का वह छायादार पेड काटा और चूल्हे में जलानेलायक उसके टुक़डे बनाएं।
पेड बहुत बडा था इसलिए उसकी आधी लकडियों से ही उस आदमी का घर भर गया।
तब उसका पडोसी मदद के बहाने बची हुई लक़डियां अपने घर ले गया। कुछ दिनों बाद उस आदमी को लगा कि अपने लिए लकडियों का इंतजाम करने के लिए ही पडोसी ने उसे पेड काटने की सलाह दी थी।
वह बडा दुखी हुआ।
गांव के एक बुजुर्ग से उसने सारी बात कही और पूछा कि क्या उससे कोई गलती हुई है?  क्या बडे पेड दुर्भाग्य का कारण होते हैं?
बुजुर्ग ने मुस्कुराकर कहा, 'पेड सचमुच दुर्भाग्यशाली था क्योंकि वह एक मूर्ख के आंगन में उगा था। इसीलिए वह कटा और अब उसे जलाया भी जाएगा।'
वह व्यक्ति अपनी गलती पर रोने लगा।
तो बुजुर्ग ने कहा, 'गलतियां इंसान से होती ही हैं। कोई बात नही, तसल्ली रखो कि अब तुम मूर्ख नहीं रहे। एक पेड खोकर ही सही तुमने जाना कि किसीकी सलाह पर तभी अमल करना चाहिए जब सलाह देनेवाले का उद्देश्य पता हो, सलाह ठीक से समझ में आए और तुम खुद भी उससे सहमत हों। ये बातें ध्यान में रखोगे तो आगे ऐसी गलती नहीं होगी।'
---
बड़ी बड़ी हस्तियों ने बहुत कुछ खोया है हल्के कानों की बदौलत।
किस बात पर व्यक्ति झपटता हैं? और कब?
हम उन बातों पर झपटते हैं जो हमारे शक का पहनावा ओढ़कर आती हैं।
हमारी सुप्त इच्छाएं लफ्जों में व्यक्त होती हैं तो हम उनका यकीन कर लेते हैं।
और जब अपनी राय पक्की नहीं होती तो औरों की बेसिर-पैर की दलीलें हमें सच लगने लगती हैं।
और तब, जब हमारे डर शब्दों की शक्ल लेकर दबे पांव हाजिर होते हैं।
झपट लेते हैं हम जो भी जानकारी जिस भी दिशा से आए और जज़्ब कर लेते हैं।
हमारा विवेक भी गोया उतनी देर तक मजे लेता रहता है कि देखो कैसे उल्लू बन रहा है।
खुद हमें यकीन होता है कि ये सच नहीं है, लेकिन.....
फिर मिट्टी के गणपति दूध पीने लगते हैं...
बिल्ली का राह काटना अखरने लगता है...
किसीके जीभ पर बैठा पैदाइशी काला तिल उसे कालीजुबानवाला बना देता है....
सुबह सवेरे विधवा का मुंह देखना अपशगुनी होने लगता है...
शनीचर को नाखून काटना दुर्भाग्य को न्यौतना लगता है...  
और इन कमजोरियों को भुनानेवालों के बाजार में उछाल आ जाता है।
सौ बातों की एक बात,
किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले अपने विवेक का दामन थाम कर स्थितियों पर गौर कर लेना बेहतर होता है। अकल पर पड़ा परदा तब कमजोरी पर सरकाया जा सकता है।  
... क्योंकि चिड़िया खेत चुग जाए तो पछताने से कुछ नहीं होता।
....जो कुछ गंवाते हैं सब अकलखाते में जमा हो जाता।