शनिवार, 5 मई 2012

स्वप्न और सत्य

-संध्या पे़डणेकर
चोमा नाम का एक लकडहारा एक दिन जंगल में लकड़ियां तोड़ने गया। वहां अचानक एक हिरन से उसका सामना हुआ। हिरन डर गया था इसलिए उसका शिकार करने में चोमा को ज्यादा कष्ट नहीं करने पड़े।
लेकिन फिर उसके सामने एक मुश्किल आई, लकड़ियां और हिरन दोनों को एक साथ कैसे ले जाया जाए?
सोच कर उसने निर्णय लिया कि पहले वह बाजार जाकर लकड़ियां बेचेगा, जो पैसा मिलेगा उससे ज़रूरत का सामान खरीद कर घर में रखेगा और फिर जंगल में आकर हिरन को ले जाएगा।
उसने एक गड्ढा खोदकर हिरन के शव को उसमें छिपा दिया।
सारे काम निपटा कर जब वह शाम को लौटा तो काफी ढूंढ़ने के बाद भी उसे वह गड्ढा नहीं मिला जिसमें उसने हिरन का शव छिपाया था। तब वह असमंजस में पड़ा। उसे लगा कि शायद हिरन के शिकार का उसने बस सपना देखा था, असल में हिरन का शिकार उसने नहीं किया। वह वापिस घर लौट गया।
रात दोस्तों की मंडली में उसने अपने सपने की बात बताई।
चोमा का एक दोस्त था चानी। उसे लगा कि चोमा ने सचमुच हिरन मारा है। रातोंरात वह जंगल गया । कोशिश करके उसने वह गड्ढा ढूंढा। उसे खोद कर हिरन को निकाला और घर ले आया। हिरन के मांस के टुकडे बेच कर उसने खूब पैसा कमाया।
चोमा को इस बात का पता चला तो वह चानी के घर पहुंचा और अपने पैसों की मांग की। उसका दावा था कि हिरन जब उसने मारा था तो उसे बेच कर मिलनेवाले पैसों पर भी उसीका हक था।
चानी ने रुपए देने से इनकार किया।
चोमा गांव के मुखिया के पास शिकायत लेकर पहुंचा।
पंचायत बैठी। चोमा की पूरी बात सुनने के बाद मुखिया ने कहा, तुमने हिरन का शिकार किया था लेकिन उसके शिकार को सपना समझने की भूल तुमने की। यह तुम्हारी गलती थी। अगर तुमने हिरन के शिकार का सपना देखा था तो अब पैसों में हिस्सा मांगने की गलती तुम कर रहे हो। सपना और सच इन दो चीजों में तुम फर्क नहीं कर पा रहे हो।
फिर चानी से मुखिया ने कहा, 'चोमा जब सपने के बारे में बता रहा था तभी तुम जान गए थे कि वह जो कह रहा है वह सच है। जागने और सपने के बीच का फर्क तुम जानते थे और चोमा के तुम दोस्त थे। इस नाते तुम्हें हिरन ढूंढ़ने में उसकी मदद करनी चाहिए थी। लेकिन उसके असमंजस का फायदा उठा कर तुमने खुद हिरन पर कब्जा किया और उसका मांस बेच कर पैसा कमाया।'
-'दोनों की गलती होने के कारण अब इन रुपयों पर तुम दोनों का नहीं पंचायत का अधिकार है।'
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जीवन में सफलता पाने के लिए स्वप्न और जागृति का फर्क जानना ज़रूरी है।
केवल इस फर्क को जानना भर काफी नहीं, नीयत साफ होना भी ज़रूरी है।
नैतिकता की इन बातों के बारे में जो जागरुक नहीं होते उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है।
किसी भी न्यायव्यवस्था से किए जानेवाले न्याय को परिपूर्ण न्याय कहना न्याय्य  नहीं।
और कि,
न्यायव्यवस्था चूंकि इंसानों द्वारा ही निर्मित है और इंसानों द्वारा ही चलाई जाती है इसलिए कई बार उसमें त्रुटियां भी हो सकती हैं। इसलिए किसी भी बात को अंतिम सत्य मानने से बचना चाहिए।