-संध्या पेडणेकर
रामानुजाचार्य को उनके गुरु ने अष्टाक्षरी मंत्र का उपदेश दिया और कहा, 'वत्स, यह कल्याणकारी मंत्र जिसके भी कान में पड़ता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। वह मोक्ष का अधिकारी हो जाता है। इसलिए इसे अत्यंत गोपनीय माना जाता है। तुम भी इसे कभी किसी अनधिकारी को मत सुनाना।'
गुरु की बात सुन कर रामानुजाचार्य मुश्किल में पड़ गए। वे सोचने लगे, अगर यह मंत्र इतना कारगर है तो इसे गोपनीय क्यों रखा जाए? इसे तो हर आदमी को सुनाया जाना चाहिए ताकि सबके दुख दूर हों और सभी के पाप कटें। उन्हें गुरु का निर्देश भी अच्छी तरह याद था। वे जानते थे कि गुरु की आज्ञा का उल्लंघन करनेवाला पाप का भागीदार बनता है। इस द्वंद्व ने उन्हें रात भर सोने नहीं दिया। एक तरफ सारे जगत् के कल्याण का सवाल था और दूसरी तरफ थी गुरु की आज्ञा।
आखिरकार उन्होंने निर्णय ले लिया। ब्राह्म मुहूर्त पर वे उठे और आश्रम की छत पर चढ़ कर अपनी पूरी शक्ति के साथ अष्टाक्षरी मंत्र का जाप करने लगे। उन्हें इस तरह जाप करता सुन कर लोगों की भारी भीड़ जुटी। थोडी ही देर में गुरुदेव भी आ पहुंचे। उन्होंने रामानुज को नीचे आने को कहा।
रामानुज नीचे उतरकर आए तब गुरुदेव उनसे बोले, 'जानते हो तुम क्या कर रहे हो?'
विनम्रता के साथ रामानुज ने उत्तर दिया, 'गुरुदेव, क्षमा करें। आपकी आज्ञा भंग करने का पाप मैंने किया है। मैं यह भी जानता हूं कि इस पाप को करने के कारण अब मैं नरक में जाऊंगा। लेकिन मुझे इसका कोई दुख नहीं है, क्योंकि, जिन लोगों ने यह मंत्र सुना वे मोक्ष को प्राप्त हो जाएंगे।'
रामानुज की बातें सुन कर गुरुदेव गद्गद् हुए। उन्होंने रामानुज को गले से लगा लिया और कहा, 'तुम ही मेरे सच्चे शिष्य हो। प्राणिमात्र के कल्याण की जिसे चिंता हो वही सच्चा धार्मिक है।'
रामानुजाचार्य को उनके गुरु ने अष्टाक्षरी मंत्र का उपदेश दिया और कहा, 'वत्स, यह कल्याणकारी मंत्र जिसके भी कान में पड़ता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। वह मोक्ष का अधिकारी हो जाता है। इसलिए इसे अत्यंत गोपनीय माना जाता है। तुम भी इसे कभी किसी अनधिकारी को मत सुनाना।'
गुरु की बात सुन कर रामानुजाचार्य मुश्किल में पड़ गए। वे सोचने लगे, अगर यह मंत्र इतना कारगर है तो इसे गोपनीय क्यों रखा जाए? इसे तो हर आदमी को सुनाया जाना चाहिए ताकि सबके दुख दूर हों और सभी के पाप कटें। उन्हें गुरु का निर्देश भी अच्छी तरह याद था। वे जानते थे कि गुरु की आज्ञा का उल्लंघन करनेवाला पाप का भागीदार बनता है। इस द्वंद्व ने उन्हें रात भर सोने नहीं दिया। एक तरफ सारे जगत् के कल्याण का सवाल था और दूसरी तरफ थी गुरु की आज्ञा।
आखिरकार उन्होंने निर्णय ले लिया। ब्राह्म मुहूर्त पर वे उठे और आश्रम की छत पर चढ़ कर अपनी पूरी शक्ति के साथ अष्टाक्षरी मंत्र का जाप करने लगे। उन्हें इस तरह जाप करता सुन कर लोगों की भारी भीड़ जुटी। थोडी ही देर में गुरुदेव भी आ पहुंचे। उन्होंने रामानुज को नीचे आने को कहा।
रामानुज नीचे उतरकर आए तब गुरुदेव उनसे बोले, 'जानते हो तुम क्या कर रहे हो?'
विनम्रता के साथ रामानुज ने उत्तर दिया, 'गुरुदेव, क्षमा करें। आपकी आज्ञा भंग करने का पाप मैंने किया है। मैं यह भी जानता हूं कि इस पाप को करने के कारण अब मैं नरक में जाऊंगा। लेकिन मुझे इसका कोई दुख नहीं है, क्योंकि, जिन लोगों ने यह मंत्र सुना वे मोक्ष को प्राप्त हो जाएंगे।'
रामानुज की बातें सुन कर गुरुदेव गद्गद् हुए। उन्होंने रामानुज को गले से लगा लिया और कहा, 'तुम ही मेरे सच्चे शिष्य हो। प्राणिमात्र के कल्याण की जिसे चिंता हो वही सच्चा धार्मिक है।'
---
एक थी बुढ़िया। उसके पास एक चटख लाल कलगीवाला मुर्गा था। वह हर रोज सुबह बांग देता और फिर सूरज उगता। बुढ़िया को लगा, मेरे मुर्गे के कारण दुनिया में सुबह होती है। मैं सबका फायदा क्यों कराऊं? ठेका लिया है? उसने एक दिन अपने मुर्गे को ढंक कर रखा। बूझो फिर क्या हुआ?
एक बुढिया ने एक बड़ी टोकरी में बहुत सारे केंकडे रखे थे और उन्हें किसी प्रकार बांधा नहीं था और न टोकरे पर ढक्कन ही रखा था। एक व्यक्ति ने उससे पूछा, ऐसे तो ये केंकडे तितर-बितर हो जाएंगे। बुढ़िया ने मुस्कुराकर कहा, ये पहले इस टोकरी से बाहर तो आएं! इनकी आदत है, कोई दो कदम आगे बढ़ता है तो पूरी जमात उन्हें पीछे खींच लेती है।
ये आम आदमी के लक्षण हैं।
उसे फकत अपने कल्याण की चिंता होती है।
ये आम आदमी के लक्षण हैं।
उसे फकत अपने कल्याण की चिंता होती है।
दूसरे के कल्याण की सोच कर भी वह सतर्क हो जाता है।
अपने कारण किसीके कल्याण की बात सोच कर भी वह बेचैन हो उठता है।
अपने कारण किसीके कल्याण की बात सोच कर भी वह बेचैन हो उठता है।
अपना कल्याण जोखिम में डाल कर अन्यों की चिंता?...ना।
यह काम तो संतों का है।
मानवमात्र के कल्याण के लिए सभी धर्मों का निर्माण हुआ है। लेकिन आज की तारीख में धर्मों में भी अपनी श्रेष्ठता को लेकर आपसी होड़ लगी हुई है।
इसीलिए मानव मात्र के कल्याण की सोचनेवाले रामानुज विशिष्ट बन जाते है।
यह काम तो संतों का है।
मानवमात्र के कल्याण के लिए सभी धर्मों का निर्माण हुआ है। लेकिन आज की तारीख में धर्मों में भी अपनी श्रेष्ठता को लेकर आपसी होड़ लगी हुई है।
इसीलिए मानव मात्र के कल्याण की सोचनेवाले रामानुज विशिष्ट बन जाते है।
---
पढ़ें -