-संध्या पेडणेकर
महाभारत युद्ध के बाद अश्वत्थामा ने रात में पांडवों के शिविर में आग लगा दी।
जिन्होंने भागने की कोशिश की उन सबको चुन चुन कर बाणों से मार डाला।
महाभारत युद्ध से बची सेना मारी गई। उस दिन युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद पांडवों को और सात्यकी को लेकर कृष्ण कहीं चले गए थे। अब पांडवों की सेना में केवल उतने ही लोग बचे थे।
सुबह लौटने के बाद पांडवों ने देखा कि शिविर और युद्धभूमि अधजली लाशों से पटी पड़ी है।
महारानी द्रौपदी के पांचों पुत्रों के शव भी क्षत-विक्षत पड़े थे। द्रौपदी की व्यथा का पार नहीं था।
अर्जुन ने उन्हें धैर्य बंधाया और कहा, 'इनके हत्यारे अश्वत्थामा का कटा सिर देखने के बाद ही आज तुम स्नान करना।'
इतना कह कर अपने रथ में बैठ कर कृष्ण के साथ अर्जुन अश्वत्थामा की खोज में निकल गए।
अर्जुन को देख कर अश्वत्थामा भागा लेकिन अर्जुन ने उसे पकड़ कर बांध दिया। उसे बंदी बना कर अर्जुन ने द्रौपदी के सामने खड़ा किया।
अश्वत्थामा पर नज़र पड़ते ही भीम ने कहा, 'इसे तो तत्काल मार डालना चाहिए।'
सबका गुस्सा उफान पर था लेकिन द्रौपदी ने सबको रोक कर कहा, 'मेरे पुत्र मारे गए हैं इसलिए, पुत्र की मृत्यु का शोक क्या होता है मैं जानती हूं। इसकी माता कृपी हमारी गुरुपत्नी है। उसके भी मेरी तरह पुत्र वियोग का दुख नहीं होना चाहिए। अपने गुरु को जिसने हमें अस्त्र-शस्त्र चलाना सिखाया उन गुरुदेव द्रोणाचार्य को को हम उनके इस पुत्र में उपस्थित पाते हैं। इसके साथ हम निष्ठुर नहीं हो सकते। छोड़ दो इसे।'
जिनके पांच मृत पुत्रों के शव सामने पड़े हों, उन पुत्रों के हत्यारे के प्रति द्रौपदी की क्षमा धन्य है।
महाभारत युद्ध के बाद अश्वत्थामा ने रात में पांडवों के शिविर में आग लगा दी।
जिन्होंने भागने की कोशिश की उन सबको चुन चुन कर बाणों से मार डाला।
महाभारत युद्ध से बची सेना मारी गई। उस दिन युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद पांडवों को और सात्यकी को लेकर कृष्ण कहीं चले गए थे। अब पांडवों की सेना में केवल उतने ही लोग बचे थे।
सुबह लौटने के बाद पांडवों ने देखा कि शिविर और युद्धभूमि अधजली लाशों से पटी पड़ी है।
महारानी द्रौपदी के पांचों पुत्रों के शव भी क्षत-विक्षत पड़े थे। द्रौपदी की व्यथा का पार नहीं था।
अर्जुन ने उन्हें धैर्य बंधाया और कहा, 'इनके हत्यारे अश्वत्थामा का कटा सिर देखने के बाद ही आज तुम स्नान करना।'
इतना कह कर अपने रथ में बैठ कर कृष्ण के साथ अर्जुन अश्वत्थामा की खोज में निकल गए।
अर्जुन को देख कर अश्वत्थामा भागा लेकिन अर्जुन ने उसे पकड़ कर बांध दिया। उसे बंदी बना कर अर्जुन ने द्रौपदी के सामने खड़ा किया।
अश्वत्थामा पर नज़र पड़ते ही भीम ने कहा, 'इसे तो तत्काल मार डालना चाहिए।'
सबका गुस्सा उफान पर था लेकिन द्रौपदी ने सबको रोक कर कहा, 'मेरे पुत्र मारे गए हैं इसलिए, पुत्र की मृत्यु का शोक क्या होता है मैं जानती हूं। इसकी माता कृपी हमारी गुरुपत्नी है। उसके भी मेरी तरह पुत्र वियोग का दुख नहीं होना चाहिए। अपने गुरु को जिसने हमें अस्त्र-शस्त्र चलाना सिखाया उन गुरुदेव द्रोणाचार्य को को हम उनके इस पुत्र में उपस्थित पाते हैं। इसके साथ हम निष्ठुर नहीं हो सकते। छोड़ दो इसे।'
जिनके पांच मृत पुत्रों के शव सामने पड़े हों, उन पुत्रों के हत्यारे के प्रति द्रौपदी की क्षमा धन्य है।
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क्रोध क्षणिक पागलपन है।
ऐसे पागलपन में व्यक्ति कभीकभार अश्वत्थामा की तरह जघन्य कृत्य भी कर गुजरता है।
क्रोध का बुखार उतर जाए तो माफी माँगना और माफी मांगनेवाले को माफ करना दोनों ही इंसानी व्यक्तित्व को परिपूर्ण बनाने वाले तत्व हैं।
क्षमा को सभी धर्मों और संप्रदायों में श्रेष्ठ गुण करार दिया गया है। क्षमा माँगना अच्छा गुण है और किसी को क्षमा कर देना इंसान के व्यक्तित्व को ऊंचा उठाता है।
रहीम कहते हैं-
'क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात,
कहाँ रहीम हरि को घट्यो जो भृगु मारी लात'
व्यक्तित्व का अद्भुत गुण है क्षमा।